गुआंगदा ने निकल बाजार में उथल पुथल मचा दी

चीन के मेटल किंग जिआंग गुआंगदा को मेटल उद्योग का स्‍टीव जॉब्स बुलाया जाता है.

गुआंगदा ने निकल बाजार में उथल पुथल मचा दी
चीन के मेटल किंग जिआंग गुआंगदा को मेटल उद्योग का स्‍टीव जॉब बुलाया जाता है. चीन के पूर्वी तट जेझ‍ियांग प्रांत के रहने वाले गुआंगदा सन 2000 में गुआंगदा छोटी सी स्‍टील कंपनी चलाते थे. आज उनकी कंपनी सिंगशान दुनिया का एक चौथाई स्‍टील बनाती हैं. 75000 कर्मचारी और 40 अरब डॉलर कारोबार वाला उनका मेटल साम्राज्‍य बीते सप्‍ताह एक अनोखी वजह से चर्चा में रहा. मार्च 2022 में गुआंगदा ने निकल बाजार में उथल पुथल मचा दी
गुआंगदा ने निकल की कीमतें टूटने पर बड़ा दांव लगाया था, लेक‍िन हुआ उलटा रुस यूक्रेन युद्ध के बाद निकल की कीमतें बढ़ने लगीं तो गुआंगदा सौदे जुटाने में लग गए. कीमतें और तेज खौलने लगी बैंकों ने गुआंगदा पर मार्जिन कॉल्‍स के लिए दबाव बनाना शुरु कर दिया. अंतत: 145 साल पुराने लंदन मेटल एक्‍सचेंज को इसके कारोबार को रोकना पड़ा. क्‍योंक‍ि लंदन मेटल एक्‍सचेंज लगा कि जिआंग के पास पैसा नहीं बचेगा. सात दिन तक निकेल में कारोबार बंद रहा. कीमतों में उतार चढ़ाव के पैमाने पर निकेल जैसा कोई नहीं. चांदी जैसी दिखने वाली इस धातु अतीत भी इसकी कीमतों जितना रोमांचक है
पलटते हैं इतिहास के पन्‍ने 
1866 का किस्‍सा है. स्‍पेंसर एम क्‍लार्क अमेरिका की नेशनल करेंसी ब्‍यूरो के सुपर‍िटेंडेट थे. अमेरिकी ऐत‍िहास‍िक उथल पुथल के दौर में था
1861 में अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के 16 वें राष्‍ट्रपति‍ की कुर्सी संभाली. अमेरिका की भीतरी राजनीत‍ि खौल रही थी. स‍िवि‍ल वार भड़क उठा. अर्थव्‍यवस्‍था पर गहरा असर पड़ा खासतौर पर करेंसी पर
लोगों ने मुश्‍क‍िल वक्‍त के लिए सोने और चांदी के सिक्‍के जमा करने शुरु कर द‍िये. हालत यह हो गई कि लेन देन ही रुक गया. क्‍योंकि टकसालों के पास सिक्‍का ढालने के लिए पर्यापत सोना चांदी नहीं था
पेपर करेंसी मजबूरी थी. डाक टिकट से लेक‍र सरकारी डिमांड नोट तक सब कुछ आजमाया.  इन्‍हीं डिमांड नोट को ग्रीनबैक कहा गया जो अमेरिकी डॉलर के लिए आज भी इस्‍तेमाल होता है
यही वह मौका था जब स्‍पेंसर क्‍लार्क ने अनोखा काम कर दिया. करेंसी ब्‍यूरो के सुपर‍िटेंडेंट के तौर पर उन्‍हें पांच सेंट के कागजी नोट छापने को कहा गया ताकि सिक्‍कों की किल्‍लत दूर हो सके. इतिहास के दस्‍तावेज बताते हैं कि अमेरिकी कांग्रेस चाहती थी कि नोट पर विल‍ियम क्‍लार्क की तस्‍वीर प्रकाश‍ित की जाए. जो अमेरिका के मशहूर अन्‍वेषक थे. उन्‍होंने उत्‍तर पूर्व प्रशांत महासागर में नए इलाकों की खोज की थी. क्‍लार्क ने सिव‍िल वार से पहले की अमेरिकी राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई थी. अलबत्‍ता आदेश में वि‍ल‍ियम क्‍लार्क का नाम स्‍पष्‍ट तौर पर दर्ज नहीं था. करेंसी ब्‍यूरों के मुख‍िया स्‍पेंसर क्‍लार्क ने इसे खुद के लिए आया आदेश माना और नोट पर अपनी तस्‍वीर छाप दी.
अमेरिकी कांग्रेस गुस्‍से से लाल पीली हो गई. क्‍लार्क पर तरह तरह के आरोप लगे कानून बदला गया, नोटों पर जीवित लोगों के तस्‍वीर छापने पर रोक लगाई गई. यही वह मौका था जब निकेल ग्‍लोबल अर्थव्‍यवस्‍था के मंच पर प्रवेश करती है. निकेल का प्रवेश जोसेफ वार्टन के साथ होता है. अमेरिका का वार्टन स्‍कूल इन्‍हीं के नाम पर है. यह बात क्‍लार्क के छापे वाले कागजी नोट से पहले की है. प्रख्‍यात मेटल उद्यमी वार्टन टकसालों को जिंक व निकल की आपूर्तिै करते थे. निकल की कमी थी. एक सेंट का स‍िक्‍का जो कांसे का होता था उसमें निकल कम क‍िये जाने का फैसला हो गया. वार्टन ने राजनीतिक रसूख का इस्‍तेमाल किया लेकिन बात नहीं बनी. इस बीच वार्टन न्‍यूजर्सी और पेनसिल्‍वानिया में निकेल की खदाने खरीद चुके थे. उन्‍होंने कागजी मुद्रा की जगह स‍िक्‍कों के लिए राजनीतिक अभियान तेज किया
संयोग से इसके दौरान कागज के नोट पर क्‍लार्क की तस्‍वीर वाला घोटाला हो गया और 1866 में राष्‍ट्रपति एंड्यू जॉनसन ने पांच सेंट का सिक्‍का चलाने का एलान कर दिया
यह सिक्‍का तांबे और निकेल से बना था स‍िक्‍कों के दिन लौट आये. बाद में अमेरिका में पांच सेंट का स‍िक्‍का ही निकल कहा जाने लगा. 20 वीं सदी में क्‍वाइन बॉक्‍स और वेंडिग मशीने आने से निकल और चमक उठा. पांच सेंट में थियेटर की टिकट मिल जाती जिसे निकेलोडियन कहा जाता था. चांदी जैसी दिखने वाली निकल बेहद कठोर धातु है जो अयस्‍क के तौर पर दुन‍िया के 23 देशों में निकाली और 25 देशों में प्रोसेस की जाती है. निकेल इंस्‍टीट्यूट के मुता‍ब‍िक दुनिया का 72% निकेल उत्‍पादन स्‍टील उद्योग में जाता है क्‍यों कि नि‍केल स्‍टील की मजबूती के लिए इस्‍तेमाल होती है
निकेल को खुदाई और प्रॉसेस के कई तरीके हैं. इसका इस्‍तेमाल बहुआयामी है इसलिए कीमतों में जबर्दस्‍त उतार चढ़ाव होता है. लंदन मेटल एक्‍सचेंज में 90 दिन के उतार चढ़ाव के पैमाने पर
बीते दस साल में निकल की कीमतों में सबसे ज्यादा उतार चढ़ाव हुआ है. बाजार की निगाह में निकेल बड़ी अप्रत्‍याशि‍त धातु है.
1600 में जब पहली जर्मनी में तांबे की खदानो में इसे निकाला गया तो उस वक्‍त इसे तांबे की एक और किस्‍म माना गया. अलबत्‍ता तत्‍कालीन उत्‍पादक इसके अयस्‍क से तांबां नहीं निकाल सके
तब इसे कॉफरन‍िकेल गया. निकेल मतलब मिथकों का राक्षस यानी तांबे का राक्षस. लौटते हैं गुआंगदा की तरफ जिन्‍हें दुनिया का निकेल किंग कहते हैं. 2014 में इंडोनेश‍िया में बड़े निवेश का फैसला उनकी चतुरता का उदारहण बताया जाता है. इसके ठीक बाद इंडोनेश‍िया ने निकल अयस्‍क का निर्यात बंद कर दिया और गुआंगदा का दबदबा हो गया, लेकिन इस बार बाजार में निकेल क‍िंग मुंह की खानी पड़ी . निकेल को यू हीं धातुओं का राक्षस नहीं कहते. यह था किस्‍सों का सिक्‍का. म‍िलते हैं अगले सप्‍ताह एक नए किस्‍से के साथ. मनी9 समझ है तो सहज है
Published - March 29, 2022, 04:45 IST