स्कूली बस से होने वाली कमाई वाणिज्यिक नहीं है. इसे कैब की परिभाषा के तहत नहीं गिना जा सकता है. इसलिए स्कूल बस पर किसी तरह का सर्विस टैक्स नहीं लगेगा. ये फैसला सीमा उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) की अहमदाबाद पीठ ने सुनाया. कोर्ट ने यह भी कहा कि बसों का इस्तेमाल विशेष रूप से स्कूली बच्चों को लाने व छोड़ने के लिए किया जाता है, इसलिए इसे कमर्शियल श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने ये बातें अक्षर ट्रैवल्स की अपील पर हुई सुनवाई के दौरान कही.
स्कूली बसों से होने वाली कमाई पर टैक्स वसूलने के लिए उत्पाद और सीमा शुल्क के मुख्य आयुक्त ने अपनी दलील पेश की थी. जिसमें कहा गया था कि सेवा प्राप्तकर्ता जेके पेपर लिमिटेड एक वाणिज्यिक संगठन है. इसे शैक्षिक निकाय के रूप में नहीं माना जा सकता है. इसलिए उसे वित्त वर्ष 2007-08 के लिए आय पर सेवा कर चुकाना होगा. इसी मामले पर बचावकर्ता के पक्ष से स्कूल को किराये पर बस मुहैया कराने वाले अक्षय ट्रैवल्स ने अपील की थी.
रमेश नायर और सीएल महार की दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई में कहा कि मोटर वाहन का उपयोग एक शैक्षणिक संस्था की ओर से स्कूली बच्चों के परिवहन के लिए किया गया है. इसलिए, इसे वित्त अधिनियम की धारा 65(20) के तहत कैब की श्रेणी से बाहर रखा जा सकता है. पीठ ने यह भी कहा कि वे राजस्व विभाग की ओर से दिए गए तर्क से सहमत नहीं हैं. क्योंकि जे.के. पेपर लिमिटेड की ओर से संचालित स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की सुविधा के लिए बस का इंतजाम किया गया है. ये परिवहन का एक विकल्प है, ये कमर्शियल यूज के लिए नहीं चलाई जा रही हैं इसलिए इस पर कोई सेवा कर नहीं लगाया जा सकता है.