कोरोना काल के दौरान अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज डिस्जार्च के बाद भी पोस्ट कोविड लक्ष्णों से प्रभावित पाए गए. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के तहत हॉस्पिटल नेटवर्क पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक ऐसे लोगों की मरने की संभावना उन मरीजों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा थी, जिनमें ऐसे लक्षण नहीं देखने को मिले. रिपोर्ट में पाया गया कि मध्यम से गंभीर कोविड-19 संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती कराए गए लोगों में से 6.5 फीसद की स्वस्थ होने के एक साल के अंदर मौत हो गई. 31 अस्पतालों के 14,419 मरीजों की जानकारी के आधार पर यह आंकड़े सामने आए हैं. ऐसे मरीजों का एक साल तक फोन पर फॉलो-अप लिया गया था.
स्टडी के मुताबिक सितंबर 2020 से अस्पताल में भर्ती लोगों में से 17.1 फीसद को पोस्ट-कोविड दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हालांकि इस अध्ययन में डब्ल्यूएचओ या यूएस सीडीसी की ओर से लॉन्ग कोविड को लेकर दी गई परिभाषा का पालन नहीं किया गया है, जबकि उनमें थकान, सांस फूलना, याद रखने में कठिनाई को शामिल किया गया.स्टडी में शामिल मरीजों को अस्पताल से छुट्टी के चार सप्ताह बाद पहले फॉलोअप में ऐसे किसी लक्षण से प्रभावित होने पर सूचना देने को कहा गया था.
पुरुषों में दिखा ज्यादा जोखिम
अध्ययन से पता चलता है कि अस्पताल से छुट्टी के बाद के एक साल में मृत्यु का जोखिम पुरुषों में सबसे ज्यादा देखने को मिला. जो पुरुष 60 वर्ष से ज्यादा के थे और पहले से कई बीमारियों से जूझ रहे थें, उन्हें ज्यादा खतरा था. स्टडी में यह भी पाया गया कि जिन लोगों को टीके की कम से कम एक खुराक ले ली थी, उनमें चार हफ्ते के पहले फॉलोअप में मृत्यु का जोखिम 40 फीसद कम हो गया. इस बारे में एक आईसीएमआर से जुड़े एक पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, “यह अध्ययन मीडियम से गंभीर कोविड-19 से पीड़ित अस्पताल में भर्ती लोगों की मृत्यु दर से संबंधित है.” कोविड -19 से ठीक होने के बाद भी उनमें पोस्ट कोविड लक्षण देखने को मिले. खासतौर पर जो मरीज पहले से ही दूसरी बीमारियों से जूझ रहे थे. उन्हें लिवर सिरोसिस और क्रोनिक किडनी रोग जैसी स्थितियों वाले मरीजों को सावधानी बरतनी चाहिए थी.