जल्द ही आपको रेल की पटरियों पर वंदे भारत की स्लीपर ट्रेनें दौड़ती नजर आएंगी. इसके लिए भारत के रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) और रूस के टीएमएच समूह ने हाथ मिलाया है. वे 200 नई ट्रेनों में से 120 की आपूर्ति करेंगे. इसके अलावा टीटागढ़ वैगन्स और भेल 80 ट्रेनों की आपूर्ति करेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि नई वंदे भारत स्लीपर, स्पीड समेत दूसरी चीजों में राजधानी ट्रेन का विकल्प बन सकती है.
आरवीएनएल के जीएम (मैकेनिकल) आलोक कुमार मिश्रा का कहना है कि वंदे भारत ट्रेनों के नए स्लीपर संस्करण में यात्रियों को वर्तमान राजधानी ट्रेन के मुकाबले कम झटके, कंपन और शोर महसूस होगा. इतना ही नहीं वंदे भारत स्पीड के मामले में भी राजधानी से ज्यादा बेहतर साबित होगी. हालांकि दोनों ही ट्रेनें 160 किमी प्रति घंटे की गति तक पहुंचने में सक्षम होंगी. मगर वंदे भारत इस स्पीड को थोड़ा पहले हासिल कर लेगी.
कितने होंगे कोच?
वंदे भारत स्लीपर ट्रेन को 160 किमी प्रति घंटे की गति प्राप्त करने के लिए डिजाइन किया जाएगा. इसमें 16 बोगियां होंगी, जिनमें से ग्यारह 3 टियर एसी कोच होंगे. चार 2 टियर एसी कोच और एक 1 टियर एसी कोच होगा. हालांकि रेलवे कोचों की संख्या 20 या 24 तक बढ़ा सकता है. ट्रेनों का निर्माण महाराष्ट्र के लातूर में किया जाएगा. टीटागढ़ वैगन्स और बीएचईएल का एक संघ रेलवे को बाकी 80 ट्रेनों की आपूर्ति करेगा.
ज्यादा चक्कर लगाने में सक्षम
वंदे भारत स्लीपर ट्रेनें बिजली से चलेंगी. इसके स्लीपर डिब्बे में यात्रियों को ज्यादा कंफर्ट मिलेगा. उन्हें कम झटके लगेंगे. स्पीड के मामले में भी वंदे भारत, राजधानी से ज्यादा बेहतर साबित होगी. वंदे भारत राजधानी की तुलना में जल्दी 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार हासिल करने में सक्षम है, जिसके चलते ये ज्यादा चक्कर लगा सकेगी. वंदे भारत का वर्तमान संस्करण 60 सेकंड से भी कम समय में 0-100 किमी/घंटा की गति सीमा तक पहुंचने में सक्षम है. स्लीपर संस्करणों में भी ऐसी तेजी देखने को मिलेगी.
120 करोड़ रुपए प्रति ट्रेन लगी बोली
वंदे भारत स्लीपर ट्रेनों लिए टीएमएच-आरवीएनएल ने 120 करोड़ रुपए प्रति ट्रेन बोली लगाई है. आरवीएनएल अधिकारी को उम्मीद है कि कंसोर्टियम समझौते पर हस्ताक्षर करने की तारीख से दो साल में पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लेगा. चेन्नई में स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में फिलहाल एक प्रोटोटाइप बनाने का काम चल रहा है. 35 हजार करोड़ के इस प्रोजेक्ट में 120 वंदे भारत स्लीपर ट्रेनों का निर्माण और 35 सालों तक उनका रखरखाव शामिल है.