अगले 4 से 5 सालों तक हर साल करीब 5 फीसदी फुल टाइम टेक्नोलॉजी कर्मचारियों की जगह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम मेधा ले लेगी. विश्लेषकों का कहना है कि बेसिक जॉब्स की जगह एआई आधारित ऑटोमेशन समाधान, प्रौद्योगिकी को नियुक्त किया जाएगा. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि एआई के आने से बड़ी संख्या में नए तरह के जॉब पैदा होंगे, जिनमें बहुत कम सहायक भूमिका होंगी. इन नए जॉब में अधिक तेजी से निर्णय लेने और रणनीति बनाने वाली भूमिकाओं में काम करने वालों की मांग बढ़ेगी.
एआई के आने से एआई नैतिकता और टिकाऊ प्रथा क्षेत्र में काम करने वालों की भी मांग बढ़ेगी. सर्विस नाउ और यूआईपैथ जैसी प्रमुख ऑटोमेशन कंपनियों के कार्यकारी भी जॉब प्रोफाइल में आ रहे बदलावों की पुष्टि करते हैं. सर्विस नाउ के सीटीओ पैट कैसी का कहना है कि अबतक देखा गया है कि जब किसी सेक्टर में कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, तब इससे और ज्यादा नए काम के अवसर पैदा होते हैं.
मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की हालिया जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक अकेले अमेरिका में एआई की वजह से 1.2 करोड़ रोजगार भूमिकाओं में बड़ा बदलाव आएगा. सबसे ज्यादा असर मार्केटिंग और सेल्स जैसे क्षेत्र पर पड़ेगा. इसके अलावा कस्टमर ऑपरेशन, प्रोडक्ट डेवलपमेंट और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसे कामों पर भी इसका महत्वपूर्ण असर दिखाई देगा.
आउटसोर्सिंग एक्सपर्ट पारिख जैन का मानना है कि हर साल करीब 5 फीसदी फुल टाइम टेक्नोलॉजी कर्मचारियों को नई भूमिका तलाशनी होगी. क्योंकि उनकी जगह एआई टूल्स ले लेंगे. हालांकि जैन का कहना है कि एआई टूल्स को सहायक भूमिका में तैनात किया जाएगा, जिसमें बहुत अधिक निर्णय क्षमता की आवश्यकता नहीं होती है.
एआई टूल्स के बढ़ते उपयोग से शुरुआती स्तर के जॉब्स पर कुछ असर पड़ सकता है. क्योंकि कंपनियां नए एआई टूल्स को तैनात कर उनकी दक्षता को परख रही हैं. अगर एआई टूल्स कंपनियों की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं, तब लंबी अवधि में ये मानव जॉब्स पर बुरा असर डालेंगे.