बुंदेलखण्ड: यहां के विभिन्न भागों में प्राचीन बौद्ध धर्म के साक्ष्य आज भी पाए जाते हैं

Buddha Purnima: झांसी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर दतिया जिले में स्थित गुर्जरा शिलालेख इस बात की पुष्टि करता है कि बुंदेलखंड में भी बौद्ध धर्म का प्रभाव था

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Nagpur: Young monks offer prayers to Lord Buddha on the occasion of Buddha Purnima, at Buddha Bhoomi Mahavihar on the outskirts of Nagpur, Wednesday, May 26, 2021. (PTI Photo)(PTI05_26_2021_000189B)

Nagpur: Young monks offer prayers to Lord Buddha on the occasion of Buddha Purnima, at Buddha Bhoomi Mahavihar on the outskirts of Nagpur, Wednesday, May 26, 2021. (PTI Photo)(PTI05_26_2021_000189B)

Buddha Purnima: हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है, इस पर्व को बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) कहते हैं. भारत के विभिन्न शक्तिशाली राजाओं ने महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को अपने साम्राज्य में प्रचारित किया. माना जाता है कि महात्मा बुद्ध के चरण बुंदेलखण्ड भूमि पर भी पड़े होंगे.

बुंदेलखण्ड के विभिन्न भागों में प्राचीन बौद्ध धर्म के साक्ष्य आज भी प्राप्त होते हैं.

प्राचीन बुंदेलखण्ड में भी था बौद्ध धर्म का प्रभाव

इतिहासकार डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि, झांसी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर दतिया जिले में स्थित गुर्जरा शिलालेख इस बात की पुष्टि करता है.

इस अभिलेख को महान मौर्य सम्राट अशोक ने लिखवाया था. इस शिलालेख की सबसे खास बात यह है कि इस शिलालेख में मौर्य सम्राट का नाम अशोक लिखा है.

यदि अशोक के मास्की शिलालेख को छोड़ दिया जाये तो पूरे देश विदेश में उसके द्वारा स्थापित किसी अन्य शिलालेख में अशोक नाम नहीं आता.

इस दृष्टि से भी यह शिलालेख पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस शिलालेख की लिपि ब्राम्ही और भाषा प्राकृत है. इसका समय दूसरी सदी ईसा पूर्व माना गया है.

देवगढ़ में खोजीं गयीं बौद्ध गुफाएं

इसके अलावा ललितपुर के देवगढ़ में कुछ ही वर्ष पूर्व बौद्ध गुफाएं खोजीं गयीं हैं, जिनमें बेतवा नदी किनारे देवगढ़ पहाड़ी पर चट्टानों को तराश कर महात्मा बुद्ध और संघ से संबंधित विभिन्न घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है.

इनमें भगवान बुद्ध की दुर्लभ मूर्ति है, जिसमें ध्यानमग्न बुद्ध को कैवल्य ज्ञान प्राप्ति से रोकने के लिए विविध तरीके से उन पर अनेक कठिनाइयां डाला जाना दर्शाया गया है.

बौद्ध धर्मानुयायियों और शोधार्थियों के लिए ये महत्वपूर्ण

इतिहासकार डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि ये बौद्ध धर्मानुयायियों और शोधार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. झांसी जिले के एरच में भी विद्वानों के मतानुसार एक बौद्ध मठ था जो केवल स्त्रियों के लिए ही था.

महिलाओं को महात्मा बुद्ध के जीवन काल में ही संघ में शामिल कर लिया गया था. संभवतः उसी रूप में एरच में भी बौद्ध भिक्षुणी और साधिकाओं के लिए मठ बनाया गया होगा. वर्तमान में इसके अवशेष नष्ट हो चुके हैं.

महोबा में भी एक टीले की खुदाई से मिल चुकी हैं अनेक बौद्ध प्रतिमा

बुंदेली संस्कृति प्राचीन काल में मालवा तक प्रचलित थी. सांची का बौद्ध स्तूप विश्व प्रसिद्ध है. बुंदेलखण्ड के ही महोबा जिले में एक टीले की खुदाई से अनेक बौद्ध प्रतिमाऐं प्राप्त हुईं थीं, जिसमें से एक राजकीय संग्रहालय झांसी में भी सुरक्षित है.

शिवपुरी जिले में स्थित राजापुर गांव में बौद्ध स्तूप और चंदेरी के पास बेहटी गांव में बौद्ध मठ भी प्राप्त होते हैं. डॉ. चित्रगुप्त के अनुसार इस प्रकार प्राचीन बुंदेलखण्ड में बौद्ध धर्म का प्रसार लोक जीवन में हो चुका था. यहां संस्कृति समस्त धर्मों-मतों को सुशोभित करती रही है.

Published - May 26, 2021, 06:55 IST