निवेश के मामले में निवेशकों का दो शब्दों से बार-बार सामना होता है एसेट एलोकेशन और डायवर्सिफिकेशन. क्या होते हैं एसेट एलोकेशन और डायवर्सिफिकेशन, इनमें क्या है फर्क? देखिए ये वीडियो.
दीर्घकालिक धन सृजन के लिए, थीमैटिक या सेक्टोरल के मुकाबले अन्य परिसंपत्ति वर्गों के साथ-साथ लिए जाने वाले डायवर्सिफायड फंड सर्वाधिक प्रभावी होते हैं.
किसी भी निवेश पोर्टफोलियो को तैयार करने के लिए डायवर्सिफिकेशन और एसेट अलोकेशन का काफी महत्व होता है. दोनों का मकसद जोखिम को कम करना होता है.
ऐसा कहा जाता है कि पोर्टफोलियो में ज्यादा डायवर्सिफिकेशन जरूरी होता है, सवाल है कि क्या ज्यादा संख्या में फंड खरीदने से निवेश में गलतियां हो सकती हैं.
भारत के कई फंड हैं जिनका 5-30% निवेश ग्लोबल स्टॉक्स में है. मौजूदा फंड का exposure आपके पोर्टफोलियो के 25% है तो आपको अलग से फंड लेने की जरुरत नहीं.
बॉन्ड में एक हद तक रिटर्न मिलने की आशा रहती है. लेकिन, कुछ ऐसे पहलू हैं जिन पर आपको बॉन्ड खरीदने से पहले विचार कर लेना चाहिए.
Diversification: डायवर्सिफिकेशन का मतलब है सारा पैसा एक जगह ना लगाकर अलग-अलग विकल्पों में लगाना ताकि जोखिम घटे, लेकिन ऐसा करने में कहीं ये गलतियां ना कर बैठें