टैक्स सेविंग के लिए ये है शानदार ऑप्शन

अगर टैक्स के दायरे में आते हैं तो इसके लिए समय रहते प्लानिंग करना बहुत जरूरी है. मौजूदा समय में टैक्स प्लानिंग के लिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) अच्छा विकल्प है-

  • Jyoti Jain
  • Updated Date - February 3, 2024, 11:23 IST
टैक्स सेविंग के लिए ये है शानदार ऑप्शन

वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अच्छी फाइनेंशियल प्लानिंग बहुत जरूरी है. टैक्स प्लानिंग आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग का अहम हिस्सा है. टैक्स प्लानिंग को समझना एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसमें कोई भी व्यक्ति कर दक्षता (टैक्स एफिशिएंसी) के लिहाज से अपनी वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करता है ताकि संसाधनों का निवेश और इस्तेमाल सबसे अच्छे तरीके से हो सके. टैक्स प्लानिंग का मतलब छूट, कटौती और बेनिफिट्स के इस्तेमाल के जरिए टैक्स की देनदारी को कम करना होता है.

भारत में टैक्स प्लानिंग से टैक्सपेयर्स को विभिन्न टैक्स छूट, कटौती और बेनिफिट्स के जरिए हर वित्त वर्ष में अपनी टैक्स देनदारी को कम करने में मदद मिलती है. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते देश के विकास के लिए अपनी आय के मुताबिक समय पर इनकम टैक्स का भुगतान करना अनिवार्य है. हालांकि, अधिकतर लोग इनकम टैक्स के भुगतान से बचते हैं. इससे देश की ग्रोथ पर असर पड़ता है और आप सीधे तौर पर इनकम टैक्स अधिकारियों के संदेह के घेरे में आ जाते हैं. अगर आप दोषी पाए जाते हैं तो भारी जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर कैद भी हो सकती है. ऐसे में इनकम टैक्स देने से बचने के बजाय लोगों को समय पर टैक्स का भुगतान करना चाहिए लेकिन आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत टैक्स सेविंग इंस्ट्रुमेंट्स में निवेश के जरिए पैसे की बचत करनी चाहिए.

टैक्स प्लानिंग का मकसद

टैक्स प्लानिंग फाइनेंशियल प्लानिंग का अहम हिस्सा है. प्रभावी तरीके से टैक्स प्लानिंग करने से फाइनेंशियल प्लान के सारे पहलुओं का सबसे प्रभावी तरीके से इस्तेमाल हो पाता है. इससे टैक्सेबल इनकम का इस्तेमाल निवेश के विभिन्न आयामों के लिए किया जाता है जिससे किसी व्यक्ति की कर देनदारी कम हो जाती है. लॉकइन के बाद की निवेश की रकम का इस्तेमाल जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है. ज्यादातर मामलों में ये रिटायरमेंट फंड की तरह काम करता है. कुल मिलाकर टैक्स प्लानिंग का लक्ष्य टैक्स की देनदारी को कम करना और वित्तीय स्थिरता हासिल करना होता है.

टैक्स प्लानिंग के प्रकार

टैक्स प्लानिंग किसी भी व्यक्ति की फाइनेंशियल ग्रोथ की कहानी का अभिन्न हिस्सा होता है. चूंकि, इनकम टैक्स के एक खास ब्रैकेट में आने वाले हर व्यक्ति के लिए टैक्स का भुगतान अनिवार्य होता है. ऐसे में आप अपने टैक्स भुगतान को इस प्रकार से स्ट्रीमलाइन क्यों नहीं करते हैं कि इससे आपको कम से कम जोखिम के साथ एक अवधि में अच्छाखासा रिटर्न मिल जाए. इन सबसे बढ़कर प्रभावी तरीके से योजना बनाने से आपकी टैक्स लायबलिटी भी काफी कम हो जाती है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक टैक्स प्लानिंग को मोटे तौर पर इन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

  • उद्देश्यपूर्ण टैक्स प्लानिंग (Purposive tax planning):

किसी खास लक्ष्य को ध्यान में रखकर टैक्स की योजना बनाना

  • परमिसिव टैक्स प्लानिंग (Permissive tax planning):

कानून के फ्रेमवर्क के तहत टैक्स प्लानिंग

  • लॉन्ग रेंज और शॉर्ट रेंज टैक्स प्लानिंग:

किसी भी वित्तीय वर्ष की शुरुआत या आखिर में की जाने वाली प्लानिंग

टैक्स सेविंग के लिए कहां करें निवेश?

इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की विभिन्न धाराओं के तहत कोई भी व्यक्तिगत करदाता टैक्स में छूट, कटौती और फायदे क्लेम कर सकता है. टैक्स प्लानिंग में हाउसिंग लोन के ब्याज के लिए सेक्शन 80EE, मेडिक्लेम पर जमा किए गए प्रीमियम के लिए सेक्शन 80D, एजुकेशन लोन पर जमा किए गए ब्याज के लिए सेक्शन 80E को आमतौर पर शामिल किया जाता है. इनमें सेक्शन 80C टैक्स की बचत के लिए सबसे पॉपुलर इंवेस्टमेंट ऑप्शन है.

सेक्शन 80C के तहत आपको टैक्स की बचत के लिए कई विकल्प हैं. फाइनेंशियल प्लानर्स दो वजहों से सेक्शन 80C के तहत टैक्स बेनिफिट्स प्राप्त करने के लिए ईएलएसएस म्यूचुअल फंड की सलाह देते हैं. पहलायह इक्विटी पर आधारित होता है. दूसराअन्य इंस्ट्रुमेंट्स की तुलना में इसका लॉकइन पीरियड सबसे ज्यादा होता है. मार्केट से लिंक होने के कारण ईएलएसएस में तुलनात्मक रूप से ज्यादा जोखिम होता है लेकिन इनमें बेहतरीन रिटर्न देने की क्षमता भी मौजूद होती है.

एक अन्य पहलू है जो भारत में इसे निवेश का सबसे पसंदीदा विकल्प बना देता है. ईएलएसएस में एकसाथ भारीभरकम निवेश करने के बजाय एसआईपी के जरिए थोड़ाथोड़ा निवेश करने विकल्प मिल जाता है. इस प्रकार भारत में इनकम टैक्स बचाने वाले निवेशकों के लिए एसआईपी के जरिए ईएलएसएस में निवेश व्यावहारिक और सुविधाजनक विकल्प है.

निवेशकों को जागरूक करने की एडलवाइज म्यूचुअल फंड की पहल

सभी म्यूचुअल फंड निवेशकों को एक बार केवाईसी प्रोसेस को पूरा करना होता है. निवेशकों को केवल रजिस्टर्ड म्यूचुअल फंड (आरएमएफ) के साथ डील करनी चाहिए. केवाईसी, आरएमएफ से जुड़ी अधिक जानकारी और किसी भी तरह की शिकायत दर्ज कराने का प्रोसेस जानने के लिए विजिट करेंः https://www.edelweissmf.com/kyc-norms

म्यूचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. कृपया निवेश करने से पहले सभी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ें.

Published - January 3, 2024, 05:10 IST