आपकी कमाई, खर्चे और टैक्स में तालमेल होना चाहिए. इन तीनों में अगर मिसमैच दिखेगा तो इनकम टैक्स की कार्रवाई के लिए तैयार हो जाइए. SFT- Statement of Specified Financial Transaction से आपके बड़े खर्चों का लेखा-जोखा मिलेगा. अगर आप बड़ी रकम की Fixed deposit करते हैं या बचत योजना से बड़ा ब्याज मिला, नकद में की बड़ी लेनदेन, मोटी शॉपिंग का क्रेडिट कार्ड से पेमेंट या शेयर्स और म्युचूअल फंड में मिलता है मुनाफा – इनकम टैक्स को सबकी खबर रहेगी.
पैसे का लेन-देन छिपाना पड़ेगा भारी
इनकम टैक्स रिटर्न में आपको खर्चों का ब्यौरा नहीं देना होता इसलिए लोग इसे बताते नहीं हैं. लेकिन अब ऐसा करना मुमकिन नहीं, क्योंकि आपके फॉर्म 26 AS में इसकी जानकारी दी जाएगी. इनकम टैक्स के सेक्शन 114E के तहत सारी लेनदेन की जनकारी बैंक और वित्तीय संस्थान इनकम टैक्स विभाग को 31 मई तक देंगे. ऐसा नहीं हो सकता कि लाखों की शॉपिंग कर लें या मोटा ब्याज मिले और टैक्स चंद हजारों का ही दें रहें हो.
SFT का मकसद
टैक्स चोरी को रोकने के लिए SFT की भूमिका अहम है. टैक्स एक्सपर्ट गौरी चढ्ढा के मुताबिक, SFT के जरिए इनकम टैक्स विभाग ये देखता करता है कि कहीं करदाता कोई जानकारी छिपा तो नहीं रहा. इसलिए सावधान रहिए अब केवल आपकी इनकम ही नहीं बल्कि खर्चे भी इनकम टैक्स के रडार पर है. अगर कमाई कम और खर्चा ज्यादा दिखेगा तो इनकम नोटिस आएगा. करदाता अपने इनकम का स्रोत संतोषजनक तरीके से बता दे तो ठीक है वरना इसे undisclosed इनकम मानकर पेनाल्टी और इंट्रेस्ट के साथ टैक्स चुकाना होगा.
कौन से ट्रांजैक्शन आएंगें SFT के दायरे में?
– बैंक के सेविंग्स अकाउंट में 10 लाख से ज्यादा का कैश पेमेंट या डिपॉजिट
– बैंक के करेंट अकाउंट से 50 लाख से ज्यादा का डिपॉजिट या विड्राल
– 10 लाख से ज्यादा का फिक्सड डिपॉजिट
– क्रेडिट कार्ड से 1 लाख से ज्याद का पेंमेंट
-30 लाख से ज्यादा की स्टैंप वैल्यू की प्रॉपर्टी खरीदी गई हो या बेची गई हो
– 10 लाख से ज्यादा का म्युचूअल फंड में निवेश
– 10 लाख से ज्यादा के बॉन्ड, शेयर्स या डिबेंचर्स का लेन-देन
– ट्रैवेलर चेक, डेबिट / क्रेडिट कार्ड या करेंसी कार्ड के जरिए 10 लाख से ज्यादा के फॉरेन करेंसी के ट्रांजैक्शन पर
कौन बताएगा इनकम टैक्स को?
हर साल के 31 मई तक वित्तीय संस्थान फॉर्म 61A में बीते फाइनेंशियल ईयर की जानकारी शेयर करेंगे. अगर संस्थान समय पर SFT नहीं जमा करेंगे तो रोजाना के हिसाब से 500 रुपए डिफॉल्ट फी देना होगा. बैंक, NBFC, पोस्ट ऑफिस, म्यूचुअल फंड हाउस, बॉन्ड और शेयर जारी करने वाली कंपनियां , प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रार और फॉरेन एक्सचेंज का काम करने वाली कंपनियों को हर साल इसे तैयार करना होता है.