भारत के कुछ राज्यों में एक तय सीमा से अधिक कमाई करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रोफेशनल टैक्स का भुगतान राज्य सरकार को करना पड़ता है. हालांकि केंद्र शासित प्रदेशों और कुछ राज्यों जैसे दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि में कमाई करने वालों को कोई अतिरिक्त टैक्स नहीं चुकाना होता है. ये ऐसा टैक्स है जो एक निर्दिष्ट स्तर से ऊपर आय अर्जित करने वाले वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी दोनों को चुकाना होता है. ये कर राज्य सरकार लगाती है.
क्या होता है प्रोफेशनल टैक्स?
प्रोफेशनल टैक्स राज्य सरकारों के लिए राजस्व का एक स्रोत है. इस टैक्स की वसूली से प्राप्त आय राज्य सरकार, नगर पालिका के खजाने में जाती है. मगर, यदि किसी व्यक्ति के पास आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार शुद्ध कर योग्य आय है, तो वह टैक्स रिफंड का दावा कर सकता है. प्रोफेशनल टैक्स तभी लगाया जाता है जब कोई व्यक्ति निर्दिष्ट स्तर से ऊपर आय अर्जित करता है. हालांकि राज्यों के अनुसार नियम अलग-अलग हो सकते हैं. कुछ राज्यों में प्रति माह 4,166 रुपए से अधिक कमाने वाले किसी भी व्यक्ति को पेशेवर कर यानी प्रोफेशनल टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. जबकि अन्य में केवल जब कोई व्यक्ति प्रति माह 3 लाख रुपए से अधिक कमाता है, तो उसे यह कर देने की आवश्यकता होती है. प्रोफेशनल टैक्स किसी भी केंद्र शासित प्रदेश और कुछ राज्यों जैसे दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में नहीं लगाया जाता है. इसके अलावा महाराष्ट्र में प्रति माह 10,000 रुपए तक कमाने वाली महिलाओं पर कोई पेशेवर कर नहीं लगाया जाता है. पेशेवर कर लगाने वाले कई राज्य कुछ श्रेणियों के लोगों को छूट भी देते हैं.
किन लोगों को देना होगा टैक्स?
प्रत्येक वेतनभोगी और स्व-रोज़गार पेशेवर जो व्यापार, व्यवसाय या किसी अन्य माध्यम (जैसे, सलाहकार, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर, कानूनी व्यवसायी आदि) के माध्यम से आय अर्जित करता है, पेशेवर कर का भुगतान करना होगा. प्रोफेशनल टैक्स गैर-पेशेवर व्यवसायों में काम करके आजीविका कमाने वाले लोगों पर भी लागू होता है. जैसे- चपरासी, ऑफिस बॉय, सेल्समैन, मेडिकल प्रतिनिधि, कैशियर आदि इस श्रेणी में शामिल हैं.