इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कई विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) से शेयर बाजार में कारोबार को लेकर लिए गए कर्ज की डिटेल मांगी है. आयकर विभाग ने उनसे पूछा है कि क्या उन्होंने स्टॉक एक्सचेंजों पर व्यापार करने के लिए पैसे उधार लिए हैं? हालांकि ये अभी साफ नहीं है कि जानकारी क्यों मांगी गई, लेकिन आयकर विभाग ने इन विदेशी फंडों को कर्जदाताओं की पहचान, धन के स्रोत और दोनों पक्षों के बीच समझौते की प्रकृति का खुलासा करने का निर्देश दिया है. कुछ कर और वित्त पेशेवरों का मानना है कि इस तरह की जानकारी हासिल करने का कदम विदेशी पोर्टफोलियो प्रबंधकों के भारतीय कंपनियों और प्रमोटरों के साथ किसी भी संभावित और अप्रत्यक्ष संबंध का पता लगाना हो सकता है.
डेलॉयट इंडिया के पार्टनर राजेश गांधी ने कहा कि अभी ये साफ नहीं है विवरण क्यों मांगे गए हैं. उन्होंने यह भी बताया कि अगर लोन का उपयोग भारत में किसी व्यवसाय के लिए किया जाता है, तो अनिवासी ऋणदाता द्वारा अनिवासी उधारकर्ता को भुगतान किए गए ब्याज पर भी भारत में कर लगाया जा सकता है, लेकिन एफपीआई के मामले में ऐसा नहीं होता है. उनका कहना है कि कर अधिकारी यह भी जांच करने की कोशिश कर रहे हैं, क्या कर्ज के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एफपीआई में भारतीय धन की कोई राउंड-ट्रिपिंग हो रही है.
एक अन्य जानकार के मुताबिक एफपीआई को फंड में लोन देने वाले का विवरण साझा करने का निर्देश दिया है. विभाग ने उस इकाई के फंड के स्रोत के बारे में पूछताछ की जिसने ऋण प्रदान किया है. कर और परामर्श सेवा प्रदाता इनकॉर्प एडवाइजरी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक भावेश गांधी ने बताया कि आयकर विभाग के पास धन के लेन-देन का पता लगाने के लिए स्रोत की जांच करने का अधिकार है. मगर इस पर तब तक कोई एक्शन नहीं लिया जा सकता जब तक कि फंड ने पूंजीगत लाभ पर कम टैक्स का भुगतान करने के लिए कटौती के रूप में ऐसे ऋणों पर ब्याज का दावा न किया हो. आयकर विभाग जनवरी की शुरुआत से यह पता लगाने में लगा हुआ है कि क्या एफपीआई के पास मॉरीशस और सिंगापुर में पर्याप्त उपस्थिति है या वे महज कर का दावा करने के लिए बस कागजी कार्यालय चला रहे थे.
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