वित्त वर्ष 2020-21 से टैक्सपेयर्स के पास इनकम टैक्स सिस्टम (Income tax regime) चुनने के दो विकल्प हैं. इनमें से किसी एक ऑप्शन को आप वित्त वर्ष के लिए चुन सकते हैं. इनकम टैक्स की मौजूदा यानि पुराना सिस्टम और दूसरा विकल्प नया इनकम टैक्स सिस्टम. पुरानी टैक्स व्यवस्था चुनने पर टैक्सपेयर्स को सेक्शन 80C, सेक्शन 80D जैसी कई छूट मिलती हैं. हाउस रेंट अलाउंस, एलटीसी कैश वाउचर स्कीम में टैक्स एग्जेम्पशन का फायदा मिलता है. वहीं, इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में स्लैब की दरें कम रखी गई हैं.
इनकम टैक्स की नई व्यवस्था (Income tax regime) में सबसे ज्यादा टैक्स 30 फीसदी है. इस दर की शुरुआत 15,00,001 रुपए की इनकम से होती है. वहीं, पुराने सिस्टम के हिसाब से यह 10,00,001 रुपए शुरू की सालाना सैलरी से शुरू हो जाता है. मतलब 10 लाख से ऊपर की कमाई पर 30 फीसदी टैक्स.
इनकम टैक्स के नए सिस्टम का टैक्स रेट और स्लैब
टैक्स स्लैब | टैक्स रेट |
2,50,000 रुपए तक | शून्य |
2,50,001 से 5,00,000 रुपए | 5% |
5,00,001 से 7,50,000 रुपए | 10% |
7,50,001 से 10,00,000 रुपए | 15% |
10,00,001 से 12,50,000 रुपए | 20% |
12,50,001 से 15,00,000 रुपए | 25% |
15,00,000 रुपए से ज्यादा | 30% |
नहीं मिलेंगी अतिरिक्त छूट नए इनकम टैक्स सिस्टम में टैक्सपेयर्स को कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) में निवेश पर डिडक्शन या किराS या फूड कूपन पर टैक्स छूट का फायदा नहीं मिलेगा. इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में सिर्फ एक डिडक्शन उपलब्ध है. वह है सेक्शन 80CCD (2) के तहत संस्थान की तरफ से NPS टियर-1 अकाउंट में कॉन्ट्रिब्यूशन का डिडक्शन. इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में NPS अकाउंट रखा गया है.
कौन सी टैक्स सिस्टम आपके लिए अच्छा? एक वित्त वर्ष में अगर आप 2.5 लाख रुपए से ज्यादा क्लेम कर रहे हैं तो नए टैक्स स्ट्रक्चर में जाने पर फायदा नहीं होगा. इनकम टैक्स नियमों के मुताबिक, सैलरी पाने वाले और पेंशनर जिनकी बिजनेस इनकम नहीं है, ऐसे टैक्सपेयर हर वित्त वर्ष में नए या पुराने स्ट्रक्चर में से कोई भी एक स्ट्रक्चर चुन सकते हैं. लेकिन, अगर किसी व्यक्ति की बिजनेस इनकम है और वित्त वर्ष 2020-21 में नया टैक्स स्ट्रक्चर चुना है तो उस टैक्सपेयर को आगे भी इनकम टैक्स का नया टैक्स स्ट्रक्चर जारी रखना होगा. ऐसे टैक्सपेयर्स के पास हर वित्त वर्ष टैक्स स्ट्रक्चर बदलने का विकल्प नहीं है. बिजनेस इनकम वाले व्यक्ति जीवन में सिर्फ एक बार पुराने टैक्स स्ट्रक्चर में दोबारा स्विच कर सकते हैं. एक बार ऐसा कर लिया जाता है तो फिर व्यक्ति दोबारा इनकम टैक्स के नए स्ट्रक्चर को अपना नहीं सकेगा.
चाहे किसी ऑप्शन में रहो फिर भी नहीं देना होगा टैक्स, जानें कैसे इनकम टैक्स की दोनों ही व्यवस्थाओं में अगर किसी व्यक्ति की इनकम 5 लाख रुपए से ज्यादा नहीं है तो उसके लिए 12,500 रुपए की रिबेट मिलती है. इस तरह इनकम टैक्स की किसी भी व्यवस्था को चुनने पर अगर व्यक्ति की इनकम 5 लाख रुपए से ज्यादा नहीं है तो उसे टैक्स नहीं देना होगा.
सिर्फ 2.5 लाख रुपए तक छूट इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में सीनियर सिटीजंस और सुपर सीनियर सिटीजंस के लिए बढ़ी हुई बेसिक एग्जेम्पशन की लिमिट उपलब्ध नहीं है. हर तरह के व्यक्ति के लिए वित्त वर्ष में 2.5 लाख रुपए की बेसिक एग्जेम्पशन लिमिट लागू है. किसी वित्त वर्ष में अगर कर्मचारी दोनों में से कोई इनकम टैक्स की व्यवस्था चुनता है तो साल के दौरान वह उसे बदल नहीं सकता है. हालांकि, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त उसके पास एक टैक्स सिस्टम से दूसरे में स्विच करने का विकल्प होगा. फिर उसने इसके बारे में अपनी कंपनी को भले कोई भी विकल्प दिया हो.
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