अप्रैल महीना सैलरीड क्लास के लिए फाइनेंशियल ईयर 2024-25 की टैक्स प्लानिंग के लिहाज से अहम है. इसी महीने आपको एम्प्लॉयर यानी कंपनी को अपनी पसंद की टैक्स रिजीम के बारे में बताना होता है. इस आधार पर ही पूरे साल के दौरान सैलरी से TDS काटा जाएगा. आइए जानते हैं टैक्स रिजीम चुनना क्यों जरूरी है और किस तरह के टैक्सपेयर के लिए कौन-सी रिजीम सही रहेगी?
सैलरीड व्यक्ति के लिए चुनी गई टैक्स रिजीम से तय होगा कि कंपनी वित्त वर्ष के दौरान सैलरी से कितना टैक्स यानी TDS काटेगी. आयकर कानून के तहत, न्यू टैक्स रिजीम डिफॉल्ट रिजीम है. मतलब अगर कोई व्यक्ति कंपनी को अपनी पसंद की टैक्स रिजीम नहीं बताता है तो नई कर व्यवस्था के टैक्स स्लैब के आधार पर सैलरी से TDS काटा जाएगा. सही समय पर सही टैक्स रिजीम नहीं चुनने से सैलरी से ज्यादा TDSकट सकता है. जिससे हाथ में आने वाली सैलरी घट जाएगी.
हालांकि, सैलरीड व्यक्ति के पास इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त टैक्स रिजीम बदलने का विकल्प रहता है. इसका फायदा ये है कि अगर न्यू टैक्स रिजीम में आपका ज्यादा TDS कट गया है तो आप टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट करके और ओल्ड टैक्स रिजीम चुनकर रिफंड क्लेम कर सकते हैं.
सैलरीड व्यक्ति को न्यू और ओल्ड टैक्स रिजीम के फायदे और नुकसान देखने के बाद टैक्स रिजीम चुननी चाहिए. न्यू टैक्स रिजीम में टैक्स की दरें कम हैं. लेकिन ज्यादातर एग्जम्प्शन और डिडक्शंस, जो ओल्ड टैक्स रिजीम में मिलते हैं, उनसे हाथ धोना पड़ता है.
न्यू टैक्स रिजीम को समझें
न्यू टैक्स रिजीम में 0 से 3 लाख रुपए तक की आय पर टैक्स की दर शून्य है. 3 लाख 1 रुपए से 6 लाख की आय पर 5 फीसदी. 6 लाख 1 रुपए से 9 लाख की आय पर 10 फीसदी. 9 लाख 1 रुपए से 12 लाख की आय पर 15 फीसदी. 12 लाख एक रुपए से 15 लाख पर 20 फीसदी. और 15 लाख से ऊपर की कमाई पर 30 फीसदी टैक्स है.
अन्य फायदों की बात करें तो बेसिक एग्जम्प्शन लिमिट 3 लाख रुपए है. सैलरी इनकम पर 50 हजार रुपए का स्टैंडर्ड डिडक्शन है. नेट टैक्सेबल इनकम 7 लाख रुपए तक होने पर कोई टैक्स नहीं है. ऐसे लोग जिनकी नेट इनकम 7.5 लाख रुपए तक है उनके लिए न्यू टैक्स रिजीम सही विकल्प है क्योंकि 50,000 रुपए का स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलने के बाद टैक्स Nil हो जाता है.
ओल्ड टैक्स रिजीम में डिडक्शंस के लाभ
ओल्ड टैक्स रिजीम की बात करें तो 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए ढाई लाख रुपए तक की आय पर टैक्स की दर शून्य. 2,50,001 रुपए से 5 लाख रुपए तक की आय पर 5 फीसदी, 5 लाख एक रुपए से 10 लाख तक की इनकम पर 20 फीसदी जबकि 10 लाख एक रुपए या उससे ऊपर इनकम पर 30 फीसदी की दर से टैक्स है. सेक्शन 87A के तहत रिबेट के बाद ओल्ड टैक्स रिजीम में 5 लाख रुपए तक की आय पर कोई टैक्स नहीं है. ओल्ड रिजीम में एग्जम्प्शन और डिडक्शंस के जरिए टैक्स बचाने के मौके ज्यादा हैं.
ओल्ड टैक्स रिजीम में 70 के करीब एग्जम्प्शन और डिडक्शंस हैं, जो टैक्स देनदारी घटाते हैं. इनमें हाउस रेंट अलाउंस यानी HRA, सेक्शन 80Cऔर 80D के तहत आने वाले निवेश, सेक्शन 24 के तहत होम लोन के ब्याज पर डिडक्शन, एजुकेशन लोन के ब्याज पर डिडक्शन, सेक्शन 80CCD(1) और सेक्शन 80CCD(1B) के तहत NPS में निवेश जैसे प्रमुख डिडक्शंस शामिल हैं. जिनका इस्तेमाल करने वालों के लिए ओल्ड टैक्स रिजीम चुनना फायदेमंद हो सकता है. अब एक उदाहरण की मदद से ओल्ड और न्यू रिजीम को समझते हैं.
न्यू टैक्स रिजीम चुनें या ओल्ड?
Suppose आपकी इनकम का सोर्स सिर्फ आपकी सैलरी है. कोई अन्य सोर्स ऑफ इनकम नहीं है. ऐसे में मान लेते हैं कि आपकी इनकम यानी ग्रॉस सैलरी 10 लाख रुपए है. तो 50 हजार रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद इनकम साढ़े 9 लाख रुपए रह जाएगी. इसके बाद न्यू और ओल्ड टैक्स रिजीम में हेल्थ और एजुकेशन सेस के बाद आपकी टोटल टैक्स लायबिलिटी क्रमश: 54,600 रुपए और 1,06,600 रुपए बनेगी. न्यू टैक्स रिजीम चुनने पर 52,000 रुपए का फायदा होगा.
मान लीजिए आप टैक्स बचाने के लिए सेक्शन 80C के तहत डेढ़ लाख रुपए का निवेश करते हैं. इस डिडक्शन को क्लेम करने के बाद आपकी इनकम बनी 8 लाख रुपए. ऐसे में ओल्ड टैक्स रिजीम में आपकी टैक्स देनदारी घटकर 75,400 रुपए रह जाएगी. यहां भी न्यू टैक्स रिजीम बेहतर साबित हो रही है.
अगर आपके पास होम लोन है या फिर किराए के घर में रहते हैं और कंपनी से HRA मिलता है तो आप इसका फायदा उठा सकते हैं. मान लीजिए, आपने होम लोन के ब्याज के रूप में वित्त वर्ष के दौरान बैंक को 1 लाख रुपए का ब्याज भरा. जिसे ओल्ड टैक्स रिजीम में क्लेम किया जा सकता है. क्लेम करने के बाद आपकी इनकम 7 लाख रुपए हो जाएगी. तब ओल्ड टैक्स रिजीम में आपकी टैक्स देनदारी घटकर 54,600 रुपए रह जाएगी. जो न्यू रिजीम में बनी टैक्स देनदारी के बराबर है.
10 लाख रुपए की सैलरी पर ज्यादा टैक्स बचाने के लिए ओल्ड टैक्स रिजीम में आपका डिडक्शन 2.5 लाख रुपए से ज्यादा होना चाहिए. जो सेक्शन 80C और स्टैंडर्ड डिडक्शन से पूरी नहीं होगी. इसके लिए आपको होम लोन, HRA जैसे ज्यादा टैक्स बचाने वाले साधनों की जरूरत पड़ेगी.
अगर आपकी इनकम साढ़े 7 लाख रुपए तक है या फिर आप किसी तरह का टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट नहीं करते हैं तो आपके लिए न्यू टैक्स रिजीम बेहतर हो सकती है. लेकिन अगर होम लोन, एजुकेशन लोन, NPS में निवेश या HRA जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं तो एम्प्लॉयर को अपनी पसंद की टैक्स रिजीम बताने से पहले अपनी टैक्स देनदारी का कैलकुलेशन करें. इसमें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट incometaxindia.gov.in पर मौजूद टैक्स कैलकुलेटर की मदद ले सकते हैं. जिस टैक्स रिजीम में कम टैक्स बन रहा हो उसे आप चुन सकते हैं.