अगर आप भी शेयर बाजार में पैसे लगाते हैं तो निश्चित ही आपने भी बाइबैक के बारे में सुना होगा. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि आप इससे कैसे पैसे कमा सकते हैं? अगर नहीं तो बाइबैक से जुड़ी अहम बातें जानने के लिए पढ़ें ये आर्टिकल.
बाइबैक: बाइबैक कुछ और नहीं बल्कि आईपीओ का ठीक उलट है. एक आईपीओ में कंपनी आम लोगों के लिए शेयर जारी करती है, जबकि बाइबैक में कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों से वापस शेयर खरीद लेती है.
बाइबैक के प्रकार: कंपनियां दो तरीकों से बाइबैक करती हैं. पहला तरीका टेंडर ऑफर का होता है, जबकि दूसरा तरीका ओपन मार्केट का होता है. टेंडर ऑफर में कंपनियां एक तय समयसीमा में मौजूदा शेयरधारकों से तय कीमत पर शेयर खरीदती हैं, जबकि ओपन मार्केट वाले तरीके में ऑर्डर मैचिंग मैकेनिज्म के जरिए कंपनी शेयर बाजार पर शेयर खरीदती है.
बाइबैक ऑफर प्राइस: यह वह कीमत है, जिसपर एक कंपनी टेंडर ऑफर रूट के माध्यम से मौजूदा शेयरधारकों से शेयरों को खरीदना चाहती है. कौन सी कंपनियां शेयर बाइबैक ऑफर कर रही हैं, इसे 5पैसा (https://bit.ly/3RreGqO) जैसे स्थापित प्लेटफॉर्म्स की मदद से जान सकते हैं. 5पैसा पर आपको वे सारी जानकारियां मिल जाएंगी, जिनकी मदद से आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं.
आम तौर पर ऑफर प्राइस उस भाव से अधिक होता है, जिन पर स्टॉक मार्केट में शेयर ट्रेड कर रहा होता है. ओपन मार्केट मैकेनिज्म में कंपनी प्रचलित बाजार दर पर शेयरों को वापस खरीदती है.
खुदरा निवेशकों के लिए रिजर्वेशन: सेबी का नियम है कि किसी भी बाइबैक ऑफर में रिकॉर्ड डेट के हिसाब से छोटे खुदरा निवेशकों के लिए 15 फीसदी रिजर्वेशन होना चाहिए.
एनटाइटलमेंट रेशियो: यह दरअसल खुदरा निवेशकों की कैटेगरी के कुल शेयरों और बाइबैक में ऐसे निवेशकों के लिए ऑफर किए गए शेयरों का अनुपात होता है. इसकी गणना करने के लिए ऑफर की क्लोजिंग पर इन्वेस्टर्स के द्वारा ऑफर किए गए शेयरों को रिटेल शेयरहोल्डर्स की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है. रिटेल इन्वेस्टर्स के पास यह विकल्प होता है कि वे ऑफर में होल्ड किए गए सभी शेयरों का टेंडर दे दें, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सारे स्वीकार कर लिए जाएं.
एक्सेप्टेंस रेशियो: यह टेंड किए गए सभी शेयरों और बाइबैक ऑफर में स्वीकार किए गए शेयरों का अनुपात होता है.
पैसे बनाना: रिटेल इन्वेस्टर्स बाइबैक के अवसर को अपने मौजूदा शेयरों का टेंडर जारी कर भुना सकते हैं या ऑफर प्राइस से कम कीमत पर ट्रेड कर रहे नए शेयरों को खरीद सकते हैं. ऑफर प्राइस पर जितने शेयर स्वीकार किए जाते हैं, शेयरहोल्डर्स को उतना ही ज्यादा फायदा होता है.