आम चुनाव नजदीक आने के साथ ही सरकार ने अपनी निजीकरण की कार्रवाई लगभग रोक दी है और अब शेयर बाजारों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचने का विकल्प चुना है. कुछ चुनिंदा घरानों को हिस्सेदारी बेचने के विपक्षी दलों के आरोपों के बीच सरकार ने यह कदम उठाया है. हालांकि, इसके परिणामस्वरूप चालू वित्त वर्ष 2023-24 के विनिवेश लक्ष्य से फिर चूकने की आशंका है. भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) और कॉनकॉर जैसी बड़ी निजीकरण योजनाएं पहले से ही ठंडे बस्ते में हैं. विश्लेषकों का मानना है कि सार्थक निजीकरण अप्रैल/मई के आम चुनाव के बाद ही हो सकता है.
चालू वित्त वर्ष 2023-24 में 51,000 करोड़ रुपये की बजट राशि में से करीब 20 प्रतिशत यानी 10,049 करोड़ रुपये आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) और ओएफएस (बिक्री पेशकश) के माध्यम से अल्पांश हिस्सेदारी की बिक्री के जरिए एकत्र किए गए. एससीआई, एनएमडीसी स्टील लिमिटेड, बीईएमएल, एचएलएल लाइफकेयर और आईडीबीआई बैंक सहित कई केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों (सीपीएसई) की रणनीतिक बिक्री चालू वित्त वर्ष में पूरी होने वाली है. हालांकि, अधिकांश सीपीएसई के संबंध में मुख्य एवं गैर-प्रमुख परिसंपत्तियों की विभाजन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है और वित्तीय बोलियां आमंत्रित करने में देरी हुई है.
कुल मिलाकर करीब 11 लेनदेन हैं जो वर्तमान में डीआईपीएएम (निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग) में लंबित हैं. वहीं राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल), कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर) और एआई एसेट होल्डिंग लिमिटेड (एआईएएचएल) की अनुषंगी कंपनियां जो अब निजीकृत एयर इंडिया की पूर्व अनुषंगी कंपनियों का स्वामित्व रखती हैं… इन्हें आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) की ‘‘सैद्धांतिक’’ मंजूरी पहले ही मिल चुकी है, लेकिन डीआईपीएएम द्वारा ईओआई (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) आमंत्रित नहीं किए गए हैं.
एक बाजार विशेषज्ञ ने कहा कि रणनीतिक विनिवेश निर्णय राजनीतिक आवश्यकताओं से संचालित हो रहे हैं। चुनाव नजदीक होने के कारण हमें रणनीतिक बिक्री के मामले में कोई हलचल की उम्मीद नहीं है. भारत में अगले साल अप्रैल-मई में आम चुनाव होने हैं. रेटिंग एजेंसी फिच ने इस महीने की शुरुआत में अनुमान लगाया था कि मौजूदा नरेन्द्र मोदी प्रशासन के 2024 में चुनाव के बाद सत्ता में दोबारा लौटने की ‘‘सबसे अधिक संभावना’’ है.
शोध संस्थान ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ (जीटीआरआई) के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत में पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) की हिस्सेदारी की बिक्री गति हाल ही में धीमी हो गई है. 2021-2022 की तुलना में 2023 में प्रमुख पीएसयू हिस्सेदारी बिक्री की संख्या कम रही है. श्रीवास्तव ने कहा कि विस्तारित नियामक प्रक्रियाओं, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, कुछ क्षेत्रों में निजीकरण का राजनीतिक विरोध और 2024 के आम चुनाव से पहले सरकारी प्राथमिकताओं में बदलाव सहित विभिन्न कारकों के कारण विनिवेश की प्रवृत्ति में हाल ही में गिरावट देखी गई है.