SEBI का पीक मार्जिन नियम आज से लागू, जानिए आपके लिए इसमें क्या है

SEBI के मुताबिक, Peak Margin रूल को 4 चरणों में लागू किया जाना था. 1 जून से तीसरे चरण में ट्रेडर्स के लिए 75% पीक मार्जिन ब्रोकर के पास रखना जरूरी हो गया है.

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GMP से काफी हद तक अंदाजा लगा सकते हैं कि शेयरों की लिस्टिंग कितने भाव में हो सकती है.

GMP से काफी हद तक अंदाजा लगा सकते हैं कि शेयरों की लिस्टिंग कितने भाव में हो सकती है.
आज से यानी 1 जून 2021 से ट्रेडर्स को ब्रोकर्स के पास 75% पीक मार्जिन (Peak Margin) रखना जरूरी कर दिया गया है. इसका मतलब है कि इक्विटी कैश और F&O इंट्राडे के लिए इंट्राडे लीवरेज अब से 1.33 गुना होगा.
निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने जुलाई 2020 में पीक मार्जिन (Peak Margin) रूल नोटिफाई किए थे.
पीक मार्जिन (Peak Margin) के पीछे तर्क ये था कि ट्रेडिंग, इनवेस्टमेंट, ब्रोकर्स फंडिंग या लीवरेज पोजिशंस या इंट्राडे पोजिशंस लेने में कुछ अनुशासन कायम रखा जाए.
इस नए नियम से मार्केट्स और सिस्टम के मजबूत और ज्यादा बेहतर होने की उम्मीद है.
क्या है सेबी का 4 चरणों में लागू होने वाला नियम?

SEBI के नोटिफिकेशन के मुताबिक, पीक मार्जिन (Peak Margin) रूल को चार चरणों में लागू किया जाना था.

दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच ट्रेडर्स को कम से कम 25% पीक (अधिकतम) मार्जिन कायम रखना था. दूसरे चरण में मार्च 2021 से मई 2021 के बीच इस मार्जिन को बढ़ाकर 50% कर दिया गया था.

1 जून से लागू होने वाले तीसरे चरण में ट्रेडर्स के लिए 75 फीसदी पीक मार्जिन (Peak Margin) को ब्रोकर के पास रखना जरूरी कर दिया गया है.

आखिरी और चौथे चरण में यानी सितंबर 2021 तक क्लाइंट्स का दिन में ब्रोकर्स के पास 100 फीसदी पीक मार्जिन होना जरूरी होगा.

क्या होता है पीक मार्जिन?

पहले ब्रोकर्स के रिपोर्ट किए गए मार्जिन कस्टमर के उस ट्रेडिंग दिन में किए गए कैरी-फॉरवर्ड ट्रेड के केवल दिन के अंत में होते थे.

इस वजह से ब्रोकर्स इंट्राडे (MIS), कवर ऑर्डर (CO) और ब्रैकेट ऑर्डर (BO) में ज्यादा लीवरेज मुहैया करा पाते थे.

कस्टमर्स इक्विटीज के लिए VAR (वैल्यू ऐट रिस्क) + ELM (एक्सट्रीम लॉस मार्जिन) और F&O के लिए SPAN + एक्सपोजर की तय सीमा से कम मार्जिन पर ट्रेड कर पाते थे.

लीवरेज की वजह से ब्रोकर्स के लिए जोखिम बढ़ता है और ऐसे भी मामले हुए हैं जबकि कस्टमर्स दिन के अंत में मार्जन मुहैया करा पाने में सफल नहीं रहे.

इसका आपके लिए क्या मतलब है?

पीक मार्जिन (Peak Margin) से इंडीविजुअल लेवल और मोटे तौर पर मार्केट लेवल पर रिस्क बढ़ जाता है.

मिसाल के तौर पर, अगर किसी ट्रेडर को पता है कि उसकी ट्रेड की वैल्यू के 5% बराबर रकम ब्रोकर के पास मौजूद है तो वह अपने ट्रेडिंग लॉस को ट्रेड की वैल्यू के 2-3% पर सीमित रखने में सफल हो सकता है.

दूसरी ओर, अगर अब मार्जिन को बढ़ाकर मान लीजिए 10% कर दिया जाता है तो ट्रेडर ज्यादा लॉस के लिए जोखिम ले सकता है और वह अपने लॉस को 7-8% पर समेट सकता है.

ANMI की दरख्वास्त

ब्रोकिंग इंडस्ट्री संगठन एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंजेज मेंबर्स ऑफ इंडिया (ANMI) ने रेगुलेटरी अथॉरिटीज से डे ट्रेड पीक मार्जिन (Peak Margin) पर 100 फीसदी लेवी लगाने के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को कहा है. SEBI को लिखी अपनी चिट्ठी में ANMI ने कहा है कि प्रस्तावित मार्जिन जो वास्तविक लेवी होनी चाहिए उसका 300% है.

Published - June 1, 2021, 01:07 IST