संजय सिन्हा एक एक्सीडेंटल फंड मैनेजर हैं, लेकिन वे इस काम में उदासीन कतई नहीं हैं. बचे वक्त में सिविल सेवा की तैयारी करते हुए उन्होंने UTI से इसके गुर सीखे हैं. हालांकि, फंड्स इकट्ठा करने, उन्हें निवेश करने और क्लाइंट्स को हैंडल करने की UTI में मिली समझ इतनी अहम थी कि उन्होंने इसे छोड़ना उचित नहीं समझा. सिन्हा साइट्रस एडवाइजर्स (Citrus Advisors) के फाउंडर हैं और वे मानते हैं कि उनका सबसे बड़ा निवेश शेयरों में निवेश न होकर बच्चों की पढ़ाई है.
सिन्हा ने मनी9 से बातचीत में इनवेस्टमेंट मैजेनमेंट के बारे में अपने सबक साझा किए हैं. पेश हैं इस बातचीत के अंशः
इनवेस्टमेंट मैनेजर के तौर पर आपका सफर कैसे शुरू हुआ?
ये एक लंबी कहानी है. मैं सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहा था. इसी दौरान मैंने 1989 में यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) ज्वॉइन किया और खाली वक्त में परीक्षा की तैयारी करता रहा. मैं ग्रुप A सर्विसेज में सफल हुआ, लेकिन मैंने दोबारा एग्जाम देने का तय किया.
उस वक्त UTI एम जे फेरवानी और बाद में डॉ एस ए दवे की आक्रामक लीडरशिप में काम कर रही थी. वहां काम करने में मुझे मजा आ रहा था. ऐसे में मैंने IIM कलकत्ता जॉइन करने और अपने स्किल्स को मजबूत करने का फैसला किया. UTI में मैंने MF इंडस्ट्री को समझा. यहां फंड्स इकट्ठा करना, इनवेस्टमेंट और क्लाइंट्स को आफ्टर-सेल्स सर्विस जैसी चीजें सीखीं. इन सभी चीजों से बाद में करियर में मुझे काफी मदद मिली.
दामोदरन जो कि बाद में सेबी चेयरमैन बने, उन्होंने मुझे 250-300 करोड़ रुपये वाले 4 फंड मैनेज करने के लिए दिए. 16 साल बाद मैंने 2005 में UTI छोड़ दिया.
SBI MF में मैंने हेड ऑफ इक्विटी के तौर पर शुरुआत की. 3 साल में मुझे 34 अवॉर्ड्स मिले और 2008 तक मैं 36,000 करोड़ रुपये के फंड्स मैनेज कर रहा था.
आप की दिनचर्या और शौक क्या हैं?
मैं सुबह जल्दी उठ जाता हूं और छूटी हुई चीजें पढ़ता हूं. मैं बाकी का दिन तीन मुख्य कामों में बिताता हूं. ये हैं नई चीजें शुरू करना, विश्लेषण और चर्चा. मैं एक छोटी टीम के साथ काम कर रहा हूं. आमतौर पर हमारे हफ्ते का एजेंडा पहले ही तय हो जाता है.
दिन का एक बड़ा हिस्सा कंपनियों के विश्लेषण में लगता है. साथ ही हम सेक्टर आधारित ट्रेंड भी देखते हैं और टेक्निकल एनालिसिस पर भी नजर रखते हैं. दिन का बाकी वक्त ईमेल्स, सवालों का जवाब देने, फोन कॉल्स और जूम मीटिंगों में जाता है.
मुझे बायोग्राफी पढ़ना पसंद है. युवाल नोआह हरारी और पीटर डायमंडीज मेरे पसंदीदा लेखक हैं. इसके अलावा फिल्मों में भी मेरी दिलचस्पी है.
स्टॉक्स का चुनाव करने में आपकी क्या फिलॉसफी है?
जब मैं मार्केट्स को मैक्रो तौर पर देखता हूं तो मैं इसके सेक्टरों पर पड़ने वाले असर देखता हूं. मैं आमतौर पर लार्ज-कैप स्टॉक्स चुनता हूं. मैं सेक्टर की दिग्गज कंपनियों को चुनना पसंद करता हूं.
किसी स्टॉक के बारे में कई जरियों से जानकारी मिलती है. इसमें सबसे अहम जरिया हमारी वीकली क्वांटिटेटिव स्क्रीनिंग है जिसमें हम करीब 2,500 स्टॉक्स को देखते हैं. आर्टिकल्स और चर्चा से भी आइडिया निकलते हैं.
हम हर स्टॉक को उसकी वित्तीय सेहत, वैल्यूएशन, मौका कितना बड़ा है, मैनेजमेंट की क्वालिटी और गवर्नेंस स्टैंडर्ड के हिसाब से देखते हैं.
मल्टीबैगर हो चुके स्टॉक्स को होल्ड करने के पीछे आपकी क्या सोच होती है?
सबसे आसान फैक्टर ये है कि आप स्टॉक को कितनी करीबी से जानते हैं. एक मैनेजर के तौर पर आपको पता होगा कि किसी कंपनी की ग्रोथ उसकी पूरी लाइफ साइकिल में एकसमान नहीं होती है. स्टॉक में भी इसी हिसाब से उतार-चढ़ाव आते रहते हैं.
हम बिजनेस साइकिल, ग्रोथ, PE मल्टीपल, वैल्यूएशन और क्वांटिटेटिव फैक्टर्स को देखते हैं. हालांकि, किसी मल्टीबैगर से कब निकलना है इसका जवाब आसान नहीं है.
आप कहां नाकाम हुए और आपके क्या सबक हैं?
हर कोई अपनी जिंदगी में गलतियां करता है. साथ ही हर गलती से आपको सबक भी मिलते हैं. निवेश के शुरुआती वर्षों में इस तरह की गलतियां करने के आसार होते हैं कि आप अपने निवेश की वैल्यू को फिर से हासिल कर लेंगे. मुझे लगता है कि रिकवरी की आस में बैठे रहने की बजाय आगे बढ़ जाना जरूरी होता है.
मौजूदा हालात में आपको कहां मौका दिखाई दे रहा है?
कोविड की दूसरी लहर ने बड़े पैमाने पर तबाही पैदा की है. कुछ कंजम्पशन आधारित सेक्टरों को भी झटका लगा है, लेकिन ये लंबे वक्त तक नहीं टिकेगा. ऐसे में अगर इन स्टॉक्स में गिरावट आती है तो आपके पास खरीदारी का मौका होगा.
इंडीविजुअल इनवेस्टर्स के लिए आपकी क्या सलाह है?
जल्दी निवेश शुरू कीजिए. पूंजी तैयार करने में कंपाउंडिंग से अच्छा कुछ नहीं होता. अपना पूरा निवेश एक ही जगह मत कीजिए.
पैसा ही सबकुछ नहीं है. लेकिन, ये काफी कुछ करने की ताकत देता है. पैसों के साथ अपने रिश्तों को परिभाषित करने की कोशिश कीजिए.
आपका सबसे बड़ा निवेश क्या है?
म्यूचुअल फंड्स और स्टॉक्स में एक स्वस्थ संतुलन. कई स्टॉक्स का प्रदर्शन मार्केट से अच्छा नहीं रहता. ऐसे में मैं म्यूचुअल फंड्स के जरिए एसेट क्लास एलोकेशन करने को तरजीह देता हूं. निजी तौर पर मैं एक एंजेल इनवेस्टर भी हूं और मैंने जिन भी इकाइयों में पैसा लगाया है उसे लेकर मैं काफी खुश हूं.
मेरे बच्चों की पढ़ाई मेरे जीवन का सबसे बड़ा इनवेस्टमेंट है. उन्हें जीवन में आगे बढ़ता देखने से ज्यादा बड़ा रिटर्न मेरे लिए कुछ भी नहीं है.