निवेशकों को मोटे रिटर्न का झांसा देकर उनका पैसा लूटने वाली पोंजी स्कीम्स अब सरकार के रडार पर हैं और जल्द ही सरकार की तरफ से इनपर लगाम लगाने के लिए कार्रवाई हो सकती है. खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार निवेशकों की गाढ़ी कमाई डूबने नहीं दे सकती. मौजूदा समय में इस तरह की पोंजी स्कीम्स का संचालन कुछ ऐप्स के जरिए हो रहा है और वित्त मंत्री ने उन ऐप्स को पोंजी ऐप्स बताया है और कहा है कि सरकार रिजर्व बैंक के साथ मिलकर उनपर रोक लगाने की दिशा में काम कर रही है.
सीतारमण ने निवेशकों को आगाह करते हुए कहा कि उन्हें आकर्षक रिटर्न के बहकावे में नहीं आना चाहिए और ऐसा वादा करने वाले ऐप और वित्तीय सलाह देने वाले इन्फ्लुएंसर्स से सावधान रहना चाहिए. कम से कम दो बार जांच करनी चाहिए और भीड़ के साथ नहीं चलना चाहिए ताकि आपकी मेहनत की कमाई बच सके. ये बातें वित्त मंत्री ने कर्नाटक के तुमकुर में थिंकर्स फोरम के दौरान कहीं. वित्त मंत्री ने कहा कि 10 में तीन या चार लोग ही ऐसे होते हैं, जो अच्छी सलाह देते हैं, बाकी के सात किसी न किसी तरह के दूसरे विचार से प्रेरित होते हैं.
कौन होते हैं फिन-फ्लुएंसर?
बता दें पिछले साल नवंबर में सेबी के पूर्णकालिक सदस्य एसके मोहंती ने कहा था कि नियामक वित्तीय प्रभावित करने वालों के लिए दिशानिर्देश लेकर आएगा, जिन्हें आमतौर पर फिन-फ्लुएंसर कहा जाता है. ये लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्टॉक और निवेश से जुड़ी सलाह देते हैं. उन्होंने कहा कि बिना नियमों के सोशल मीडिया पर स्टॉक टिप्स की बाढ़ आई हुई है. इस तरह के YouTube चैनल और सोशल मीडिया हैंडल्स के पिछले कुछ सालों में लाखों फॉलोअर्स बढ़ गए हैं. वास्तव में, सेबी ने टेलीग्राम और व्हाट्सएप पर स्टॉक टिप्स के माध्यम से हेरफेर करने वालों पर भी शिकंजा कसा है, लेकिन नियामक के पास अब तक कोई प्रभावी नियमन नहीं है.
कहां से शुरू हुई पोंजी स्कीम?
इटली में जन्मे चार्ल्स पोंजी ने 1919 में अमेरिका के बोस्टन में एक निवेश योजना शुरू की थी. इसमें निवेशकों से वादा किया गया था जिसमें सिर्फ 45 दिन में पैसा दोगुना करने का लालाच दिया गया था जबकि इसके लिए कोई कारोबारी मॉडल नहीं था. इस स्कीम के तहत नए निवेशकों के पैसे से पुराने निवेशकों पैसा दिया जाता था. फिर जब नए निवेशकों का पैसा पुराने के लिए कम पड़ने लगा तब यह योजना डूब गई. इससे इतिहास की पहली पोंजी स्कीम कहा गया. इसके बाद चार्ल्स पोंजी के नाम पर इस तरह की योजनाओं को पोंजी स्कीम्स कहा जाने लगा
कैसे काम करती हैं पोंजी स्कीम्स?
पोंजी योजना के ज़रिए निवेशकों के धोखाधड़ी की जाती है. ऐसी योजनाओं में निवेशकों को बंपर रिटर्न का वादा किया जाता है. इसमें नए निवेशकों से जुटाए धन से पुराने निवेशकों को कुछ पैसा दिया जाता है. फिर एक समय नए निवेशकों को उनके निवेश पर कोई रिटर्न नहीं मिलता है, वे पूरी रकम गंवा बैठते हैं और इन नए निवेशकों का पैसा लेकर ऐसी योजना चलाने वाले लोग चंपत हो जाते हैं.
पोंजी स्कीम से जुड़े हाल के कुछ उदाहरण
अप्रैल के पहले हफ्ते में ईडी ने हैदराबाद की एक कंपनी मल्टीजेट ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड, उसके प्रमोटर डायरेक्टर टेकुला मुक्तिराज और अन्य के 18 बैंक खातों में जमा 18.79 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए थे. ये लोग डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मल्टीजेटट्रेड डॉट कॉम नाम से एक वेबसाइट बनाई गई थी, जिस पर ऐसा दिखाने के लिए कि वे कमोडिटी ट्रेडिंग से मुनाफा कमा रहे थे, पीड़ितों को उनके वर्चुअल खाते दिखाए गए थे. शुरुआत में कंपनी ने लोगों को रिटर्न भी दिया लेकिन बाद में उन्होंने निवेशकों का जवाब देना बंद कर दिया. कंपनी 100 करोड़ रुपये तक कमाए थे.
एक शेल कंपनी चलाने वाले दिलीप कुमार पी को भी गिरफ्तार किया गया है. ये केरल में ’18फुटबॉल डॉट कॉम’ नाम से ऑनलाइन पोंजी स्कीम चला रहा था. इसमें फुटबॉल सट्टेबाजी/गेमिंग की आड़ में लोगों से ठगी की जा रही थी. इसमें 525 करोड़ रुपये अब तक ED ने पकड़ा है. इसके अलावा भेड़-बकरी से जुड़े कारोबार के नाम पर या बाइक टैक्सी ने नाम पर भी लोगों के साथ बड़ी धोखाधड़ी के मामले हो चुके हैं.
क्या है पोंजी स्कीम से जुड़ा कानून?
बता दें कि साल 2019 में सरकार अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स एक्ट नाम से एक कानून लेकर आई थी, जो अनियमित संस्थाओं को जमा इकट्ठा करने और गरीबों को ठगने और उनकी गाढ़ी कमाई को हड़पने से रोकता है. इस एक्ट के अनुसार कम से कम एक से लेकर पांच साल तक जेल की सज़ा हो सकती है.