मौजूदा समय में महंगाई एक बड़ी समस्या बन गई है. दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई दर कई दशक के उच्च स्तर पर है. हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि अर्थव्यवस्थाएं इस पर किस तरह से रिएक्ट करती हैं. इस बीच सेंट्रल बैंक मॉनेटरी पॉलिसी को लेकर सख्ती दिखा रहे हैं और रेट हाइक साइकिल शुरू हो गया है. एक्सपर्ट का मानना है कि इक्विटी मार्केट तब तक अस्थिर बना रहेगा जब तक यूएस फेड यह मानता रहेगा कि बढ़ी हुई ब्याज दरों के जरिए महंगाई को कंट्रोल करने का उपाय सबसे महत्वपूर्ण है.
एस नरेन का कहना है कि इस बीच, रिजर्व बैंक (RBI) भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी के साथ घरेलू स्तर पर महंगाई पर काबू पाने के अपने दृष्टिकोण पर सक्रिय दिख रहा है. हमारा मानना है कि शॉर्ट टर्म के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की पूरी गुंजाइश है. कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ बढ़ी हुई ब्याज दरों से सामान्य रूप से कॉरपोरेट इंडिया पर असर पड़ सकता है. इसके शुरुआती संकेत मार्च तिमाही के लिए कंपनियों के नतीजों में दिखा था. जहां इनपुट लागत में बढ़ोतरी के चलते कंपनियों के मार्जिन पर दबाव दिखा था. कुछ सेक्टर में कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट की कीमतें बढ़ाकर इसका भार कंज्यूमर पर डाला है.
ग्रोथ और प्रॉफिबिलिटी के बीच बैलेंस बनाए रखना एक कठिन काम है. इसलिए, हमारा मानना है कि कुछ ऐसे सेग्मेंट होंगे, जो ब्याज दरों में बढ़ोतरी और कमोडिटी की ज्यादा कीमतों से प्रभावित होंगे और आने वाली तिमाहियों में उनकी कमाई में गिरावट देखी जा सकती है. दूसरी ओर, कमोडिटी ओरिएंटेड कंपनियों को फायदा होने की उम्मीद है और इन सेगमेंट में काम कर रहीं कंपनियों में कमाई की उम्मीद की जा सकती है.
बाजार में हालिया गिरावट के बाद वैल्यूएशन में कुछ नरमी आई है. हालांकि, आगे भी अनिश्चितता दिख रही है और बाजार में उतार-चढ़ाव बने रहने से इनकार नहीं किया जा सकता है. आगे बाजार में जिन वजहों से अस्थिरता दिख रही है, उनमें प्रमुख फैक्टर कच्चे तेल यानी क्रूड की बढ़ती कीमतें, एग्रेसिव मॉनेटरी पॉलिसी और ग्लोबल सेंट्रल बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी, सप्लाई साइड में रुकावट और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते जियोपॉलिटिकल टेंशन हैं.
इसके अलावा घरेलू निवेशकों यानी DII के इनफ्लो पर भी बाजार की नजर रहेगी. पिछले कुछ महीनों में, DII ने भारतीय इक्विटी में FIIs की ओर से की जा रही लगातार बिकवाली को प्रभावी ढंग से बैलेंस करने का काम किया है. अप्रैल के महीने में जब FIIs ने 20,468 करोड़ रुपये की बिकवाली की, उस दौरान DII ने 22,371 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी. मई में FIIs ने 37,663 करोड़ रुपये बाजार से निकाले तो DII ने 27,360 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी. आगे बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ता है तो यह देखना होगा कि रिटेल निवेशक कैसे प्रतिक्रिया देंगे. हालांकि यह उम्मीद है कि बाजार के वैल्यूएशन में सुधार के साथ, रिटेल निवेशक अपने निवेश के साथ बने रहेंगे.
कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता है कि ग्लोबल अर्थव्यवस्थाएं कड़े उपायों पर किस तरह से प्रतिक्रिया देंगी. इसलिए, निवेशकों के लिए एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी अभी के लिए सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है. हालांकि उन्हें अपने विवेक से और अपना रिस्क प्रोफाइल देखकर निवेश की स्ट्रैटेजी बनानी होगी. एक निवेशक के लिए, अलग अलग एसेट क्लास मसलन इक्विटी, डेट, गोल्ड में निवेश करना आवश्यक होता है. इसे एसेट एलोकेशन के जरिए या मल्टी एसेट स्कीम में निवेश करके प्राप्त किया जा सकता है. मल्टी एसेट स्कीम अलग अलग एसेट क्लास में निवेश करते हैं. अगर आप एकमुश्त निवेश करने पर विचार कर रहे हैं तो ने वाले निवेशक हैं, तो मौजूदा माहौल में एसेट अलोकेशन सबसे बेहतर विकल्प है.
जिन निवेशकों की SIP चल रही है, उन्हें इसे जारी रखना चाहिए और बाजार में किसी शॉर्ट टर्म डेवलपमेंट से प्रभावित नहीं होना चाहिए. हमारा मानना है कि मिड टर्म में जो निवेशक रिस्क मैनेजमेंट की उपेक्षा करते हैं, वे निगेटिव इन्वेस्टमेंट एक्सपीरिएंस के लिए हो सकते हैं. आगे की बात करें तो दरों में एक दो बार बढ़ोतरी के बाद इस बात की संभावना हो सकती है कि जोखिम लेने के लिए माहौल अनुकूल हो.
एक्सपोर्ट ओरिएंटेड कंपनियों को रुपये के कमजोर होने से लाभ होने की संभावना ज्यादा है. इसलिए निवेशक उन फंड पर विचार कर सकते हैं जो एक्सपोर्ट और सर्विसेज पर फोकस्ड हैं. क्योंकि बढ़ते कास्ट इनफ्लेशन का इन पर कम असर होता है, वहीं कमजोर हो रही करंसी का लाभ भी मिलता है. एक और दिलचस्प कटेगिरी डिविडेंड यील्ड है. वर्तमान में, कॉरपोरेट बैलेंस शीट बहुत बेहतर स्थिति में हैं और विशेष रूप से मिड और स्मॉल कैप कंपनियों में कुल लीवरेज एक दशक के निचले स्तर पर है. इसलिए, डिविडेंड पेआउट ऐसे समय में टिकाऊ दिखता है, जब बाजार आगे अनिश्चित रह सकता है.
डेट की बात करें तो हमारा मानना है कि निवेशकों को फ्लोटिंग रेट कटेगरी के फंड में निवेश करना चाहिए. इसका कारण यह है कि फ्लोटिंग रेट सिक्योरिटीज का नेचर बढ़ती ब्याज दरों और कूपन को एडजस्ट करने के लिए है. इसके अलावा, फ्लोटिंग रेट बॉन्ड का बढ़ती ब्याज दरों के साथ सकारात्मक संबंध यानी पॉजिटिव कोरिलेशन है और इसलिए फ्लोटिंग रेट बॉन्ड पर रिटर्न बढ़ती ब्याज दरों के साथ पॉजिटिव यानी सकारात्मक रूप से जुड़ा हुआ है.
मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर, मिड और स्मॉल कैप सेग्मेंट में हाल में बड़ा करेक्शन रहा है. बाजार में उतार-चढ़ाव होने पर इनमें और गिरावट की गुंजाइश है. इसलिए, जो निवेशक मिड और स्मॉल कैप में निवेश करने की सोच रहे हैं कुछ समय के लिए इसे टाल दें.
लेखक एस नरेन ICICI Prudential AMC के ED & CIO हैं