देश में इन दिनों एक अलग ही कहानी चल रही है. एक तरह बेरोजगारों की फौज खडी है, जो लगातार बढती जा रही है. इधर ऑनलाइन डिलीवरी और ई-कॉमर्स कंपनियों के पास नौकरी है लेकिन उन्हें कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं. आखिर चक्कर क्या है. आईए बताते हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई की रिसर्च बताती है कि इस साल अप्रैल में गिग लेबर्स की संख्या 8.8 मिलियन से बढ़कर 437.2 मिलियन तक पहुंच गई है. कंसल्टेंसी फर्म बीसीजी की रिसर्च के मुताबिक लंबे समय में भारत में गिग इकॉनमी में 9 करोड नौकरियां आ सकती हैं, इनका जीडीपी में योगदान 1.25% तक हो सकता है.
क्यों नहीं मिल रहे कर्मचारी
अब सवाल ये है कि जब बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है तो ऑनलाइन डिलीवरी और ई-कॉमर्स कंपनियों को कर्मचारी क्यों नहीं मिल रहे हैं. आपको बता दें कि ऑनलाइन डिलीवरी और ई-कॉमर्स कंपनियों की परेशानी इन दिनों बढ़ गई है. गिग वर्कर्स या कहें कि घर-घर खाना और सामान पहुंचाने वाले कर्मचारी अब ये काम करना नहीं चाह रहे हैं. वर्कर्स लगातार काम छोडकर जा रहे हैं. वर्कर्स की कमी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि कंपनियों के होश उडे हुए हैं.
अस्थाई रूप से बंद की सर्विस
हाल ये है कि ऑनलाइन फूड डिलीवरी करने वाली स्विगी ने मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु में अपनी पिक-अप और ड्रॉप-ऑफ सर्विस जिनी को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है.
गिग वर्कर्स की इस कमी की एक वजह पेट्रोल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी है. जानकार बता रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें तो काफी बढ गई हैं लेकिन इसके हिसाब से सामान पहुंचाने वाले राइडर्स को मिलने वाले रुपये नहीं बढ़े हैं. ज्यादातर सभी कंपनियों ने कर्मचारियों के रुपये नहीं बढ़ाए हैं. इसकी वजह से लोग अब ये नौकरी करने से बच रहे हैं.
डिलीवरी का समय बढ़ा
इस वजह से कई बडे शहरों में पिछले कुछ हफ्तों में डिलीवरी का समय भी बढ़ा है. अभी तक ऑनलाइन खाने पीने का सामान मंगाने पर उसकी डिलीवरी करीब 40 मिनट में हो जाती थी लेकिन अब इसमें एक घंटे से ज्यादा का समय लग रहा है.
इसकी वजह से कई बार ऑर्डर कैंसिल करने की भी नौबत आ रही है. कर्मचारियों को भी अब लग रहा है कि सामान की डिलीवरी के लिए उन्हें जो रुपये मिल रहे हैं वो काफी कम हैं. इधर कंपनियों को इस बात का डर है कि डिलीवरी चार्जेज बढ़ने से मांग में कमी आ सकती है.
पांचवें स्थान पर है भारत
इंडिया स्टाफिंग फेडरेशन की 2019 की रिपोर्ट बताती है कि गिग वर्कर्स के मामले में भारत अमेरिका, चीन, ब्राजील और जापान के बाद ग्लोबल लेवल पर में पांचवां सबसे बड़ा देश है. मौजूदा समय में भारत में गिग इकॉनमी के विभिन्न क्षेत्रों में 15 मिलियन से ज्यादा फ्रीलांस कर्मचारी होने का अनुमान है.
कंसल्टेंसी फर्म बीसीजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक लंबे समय में भारत में गिग इकॉनमी में 9 करोड नौकरियां आ सकती हैं, इनका जीडीपी में योगदान 1.25% तक हो सकता है.
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि दूसरे वर्कर्स की तुलना में गिग वर्कर्स अपेक्षाकृत कम उम्र के और कम शिक्षित होते हैं. वे आम तौर पर एक दिन में लिमिटेड पीरियड के लिए काम करते हैं. 61% गिग वर्कर्स दिन में आठ घंटे से कम काम करते हैं.
इन्हें कहते हैं गिग वर्कर
अब आपको बताते हैं कि गिग इकॉनमी क्या है और गिग वर्कर कौन होते हैं. दरअसल गिग वर्कर्स या गैर स्थाई कर्मचारी फ्रीलांसर होते हैं. इन्हें स्थायी कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधाएं नहीं मिलती हैं. ऐसे काम के लिए कंपनियों कर्मचारियों को काम के आधार पर भुगतान करती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो काम के बदले भुगतान के आधार पर रखे गए कर्मचारियों को गिग वर्कर कहा जाता है. हालांकि, ऐसे कर्मचारी कंपनी के साथ लंबे समय तक भी जुड़े रहते हैं.
नहीं मिलती हैं ये सुविधाएं
गिग वर्कर के तौर पर काम करने वाले कर्मचारी और कंपनी के बीच एक समझौता होता है. इस समझौता के तहत कर्मचारी की कंपनी की कॉल पर काम करना होता है. इस काम के बदले ही कंपनी गिग वर्कर को भुगतान करती है. इन कर्मचारियों को कंपनी के स्थायी कर्मचारियों की तरह वेतन-भत्ते आदि का लाभ नहीं मिलता है.
गिग वर्कर्स के लिए काम के कोई समय तय नहीं होता है. ऐसे वर्कर्स को कंपनी के समझौता के अनुसार कभी भी काम करने के लिए तैयार रहना पड़ता है.
बढ़ी है गिग वर्कर्स की संख्या
भारत में ऑनलाइन कारोबार बढ़ने के बाद गिग वर्कर्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. एक अनुमान के अनुसार देश में इस समय 10 से 12 करोड़ गिग वर्कर हैं. भारत में अधिकांश गिग वर्कर ऑनलाइन फूड प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स कंपनी और सामान की डिलीवरी जैसे कार्यों से जुड़े हैं.