कोविड के दौरान लगे लॉकडाउन की वजह से जहां लोगों की बचत में इजाफा हुआ था. वहीं अब बढ़ती महंगाई के चलते भारतीय घरेलू बचत दशक के निचले स्तर पर पहुंच गई है. लोगों को अपनी बचत में कटौती करनी पड़ रही है. इतना ही नहीं अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार परिवारों की वित्तीय संपत्ति वित्त वर्ष 2021 से लगातार गिर रही है. उस वक्त इसमें 11.5% की गिरावट दर्ज की गई थी. जो इस वर्ष तक घटकर 7.2% हो गई है. बता दें नेट एसेट की गणना समग्र वित्तीय परिसंपत्तियों से वित्तीय देनदारियों को घटाकर की जाती है.
सितंबर 2022 मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022-23 में, भारतीय परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति जीडीपी की 5.1% थी, जो 23 वर्षों में सबसे कम थी. इससे पहले वित्त वर्ष 2015 में ये सबसे कम 7.1% थी. कोविड महामारी में भारत में घरेलू बचत में वृद्धि देखी गई, जो 11.5% के शिखर पर पहुंच गई थी. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री का कहना है कि घरेलू देनदारियों में वृद्धि हुई है क्योंकि बैंकों और एनबीएफसी ने उपभोक्ताओं को खुदरा ऋण दिया है. साल 2022-23 में, शुद्ध वित्तीय संपत्ति ₹17 ट्रिलियन की तुलना में घटकर ₹13.8 ट्रिलियन रह गई. एक साल पहले इसी समय अवधि में भारतीय परिवारों की सकल वित्तीय संपत्ति 14% बढ़कर ₹29.6 ट्रिलियन तक पहुंच गई थी. हालांकि इस दौरान देनदारियों में 76% की वृद्धि देखी गई, जो संपत्ति में इजाफे से ज्यादा है. यही वजह है कि शुद्ध वित्तीय बचत में कमी आई है.
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के अनुसार भारत की खुदरा महंगाई दर अगस्त में 6.83% पर आ गई, जो आरबीआई के दो महीने के अनुमान से ज्यादा निकल गई. आरबीआई ने दो महीने के लिए महंगाई लक्ष्य 2-6% तय की गई थी. आरबीआई ने 2023-24 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.4% पर रहने का अनुमान लगाया था. ऋण वृद्धि के चलते बैंक उधार में साल-दर-साल 57% की वृद्धि हुई है, जबकि जमा में महज 32% का ही इजाफा हुआ.