हरिपुर की सरपंच गीतादेवी का भरा–पूरा परिवार था. जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो आधा गांव इस बीमारी की चपेट में था. इस महामारी से संघर्ष में कई जिंदगियों की डोर टूट गई. गीता देवी भी उनमें से एक थीं. गीतादेवी का परिवार जब इस शोक से उबरा तो दहलीज पर नया संकट खड़ा हो गया. जिस परिवार की एकता मिसाल पूरे इलाके में दी जाती थी, आज वे ही गीतादेवी की संपत्ति के लिए लड़ रहे था.
यह अकेले गीता देवी के परिवार की कहानी नहीं हैं. जिन परिवारों में बुजुर्ग बिना वसीयत लिखे चल बसते हैं, वहां अक्सर इस तरह के विवाद देखने को मिलते हैं. इसलिए अपने जाने के बाद अगर अपने परिवार को एकजुट रखना चाहते हैं, तो समय पर वसीयत जरूर लिख देनी चाहिए.
वसीयत क्या है?
वसीयत एक ऐसा कानूनी दस्तावेज है, जिससे आप अपनी इच्छा के अनुसार अपनी संपत्ति का बंटवारा तय कर सकते हैं. अगर आप वसीयत लिखे बिना चल बसते हैं तो आपके उत्तराधिकारियों को संपत्ति का बंटवारा करने में काफी समस्याएं उठानी पड़ सकती है. हो सकता है कि बंटवारा एक विवाद का रूप ले ले.
देश की अदालतों में भारी संख्या में प्रॉपर्टी से जुड़े मुकदमे आते हैं. कुल केसों में से करीब 66 फीसद प्रॉपर्टी से जुडे़ हैं. ये मामले सभी आयवर्ग से आते हैं. अंबानी परिवार भी इस तरह के विवाद से नहीं बच पाया था. यह सोचना कि आपके परिवार के लोग संपत्ति के लिए नहीं लड़ेंगे, तो यह धारणा गलत है. इसलिए समय रहते वसीयत लिख देना बहुत जरूरी है.
कौन बना सकता है वसीयत?
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के अनुसार, कोई भी ऐसा व्यक्ति जो मानसिक रूप से स्वस्थ है और बालिग है, वसीयत बना सकता है. टैक्स एवं इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन बताते हैं कि वसीयत को रजिस्टर जरूर करवा लेना चाहिए. इससे विवाद की आशंका कम हो जाती है. वसीयत के लिए दो गवाहों की जरूरत होती है. जैन कहते हैं कि एक गवाह अगर फैमिली डॉक्टर हो तो यह अच्छा रहता है, क्योंकि वह व्यक्ति की स्वस्थ दीमागी हालत की गवाही देता है. साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि वसीयत का कोई एग्जीक्यूटर हो. वसीयत व्यक्ति की मृत्यु के बाद प्रभावी होती है.
यह समझने के लिए कि वसीयत क्यों जरूरी है, पहले आपको यह जानना चाहिए कि वसीयत न हो तो क्या होगा? गीतादेवी के मामले में जो बिना वसीयत के चल बसी थीं, उनकी प्रॉपर्टी कानून के अनुसार उनके उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से बटेंगी. कानून यह नहीं जानता कि गीता देवी किस तरह से बंटवारा करना चाहती थीं. क्या वह अपने सबसे छोटे बेटे को अधिक अधिकार देना चाहती थीं, जिसे अपनी उच्च शिक्षा, शादी आदि के लिए अधिक धन की जरूरत है या वह अपनी गरीब बड़ी बेटी को बाजार की दुकान देना चाहती थीं.
गीता देवी की इच्छा अब किसी को भी नहीं पता है. वहीं, अब परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरे सदस्य पर सवाल उठाता है तो मामला कोर्ट तक भी जा सकता है.वसीयत न होने पर एक बड़ी समस्या यह आती है कि मृतक की संपत्ति को उत्तराधिकारियों को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है. इस तरह वसीयत लिखकर बंटवारे की प्रक्रिया को सहज बनाया जा सकता है, चाहे आप परिवार के सभी सदस्यों को बराबर हिस्सा ही क्यों न देना चाह रहे हों.
वसीयत में रेसिड्यूरी खंड अवश्य जोड़ना चाहिए. वसीयत लिखने वाला अगर अपनी संपत्ति के किसी हिस्से का ब्योरा वसीयत में लिखना भूल जाए तो वह हिस्सा रेसिड्यूरी खंड में नामित व्यक्ति को मिलता है. रेसिड्यूरी खंड में आई संपत्ति में से पहले व्यक्ति के अंतिम संस्कार और संपत्ति के बंटवारे की प्रक्रिया में हुआ खर्च निकाला जाता है और फिर शेष बचा हिस्सा इस खंड में नामित व्यक्ति को मिल जाता है. इतने सारे फायदों के बावजूद वसीयत लिखने वालों की संख्या काफी कम है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि लोग अक्सर इस काम को कल पर टालते रहते हैं और वह कल कभी नहीं आता. कुछ मामलों में जागरूकता की कमी भी होती है. वहीं, कुछ लोग सोचते हैं कि वसीयत बनाना एक थकाऊ प्रक्रिया है.
बलवंत जैन कहते हैं कि हमें वसीयत लिखने के लिए जीवन के अंतिम क्षणों का इंतजार नहीं करना चाहिए. जैसे ही आप बचत खाता खोलते हैं, आप अपनी वसीयत लिखने के पात्र हो जाते हैं. वसीयत को बिना किसी कानूनी शब्दजाल के बिल्कुल सरल भाषा में भी लिखा जा सकता है.
मनी9 की सलाह
वसीयत लिखते समय आपको ध्यानपूर्वक यह लिस्ट बनानी चाहिए कि किसको क्या देना है. आपको गवाहों के सामने वसीयत पर साइन करने चाहिए. वसीयत लिखना ही नहीं, बल्कि इसे सही जगह सुरक्षित रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. अपनी वसीयत को पंजीकृत कराना इसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने का एक तरीका है. वसीयत को पंजीकृत कराने के लिए आपको गवाहों के साथ रजिस्ट्रार ऑफिस जाना होगा.