जिंदगी के ज्यादातर फैसलों में रिस्क होता है. ये हमेशा अलग-अलग तरीके से हमारे सामने आते हैं. महामारी के दौर ने हमें इस बात को और भी अच्छी तरह स्पष्ट कर दिया है. हम हमेशा रिस्क के लिए तैयार नहीं होते हैं, लेकिन इनसे बचाव की कोशिश करते हैं. प्रॉपर्टी लेना भी एक रिस्क की तरह है.
एस्टेट से मतलब हर उस चीज़ से है, जिसका इंसान मालिक होता है. इसमें हर प्रकार की फाइनेंशियल संपत्ति, प्रॉपर्टी और इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी भी शामिल होती है. जब व्यक्ति प्रॉपर्टी खरीदने की प्लानिंग करता है तो ये भी सोचता है कि उसके मरने या असक्षम हो जाने के बाद उसका क्या होगा और किसके पास वो जाएगी?
समाज में सिर्फ अमीर नहीं बल्कि प्रॉपर्टी की प्लानिंग हर वर्ग और व्यक्ति करता है. ये वो संपत्ति होती है, जो आप अपनी आने वाली पीढ़ियों को सौंपकर जाने की सोचकर चलते हैं. इसमें संपत्ति के भाव ज्यादा अगली पीढ़ी को सौंपने वाली भावना भी शामिल होती है.
जैसा बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक बार कहा था कि “तैयारी में असफल होने का मतलब, अपने फेल होने की तैयारी से होता है.” प्लानिंग जीवन के हर स्तर पर काफी जरूरी हो जाती है.
संपत्ति की प्लानिंग सिर्फ उम्रदराज लोगों के चिंता करने का विषय नहीं है, क्योंकि हम जानते हैं कि जीवन अप्रत्याशित है. एस्टेट प्लानिंग में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा कानूनी राय होती है, जो पूरी प्रक्रिया को आसान और कम जोखिम भरा बनाती है.
कानूनी सलाह बेहद महत्वपूर्ण जानकारी मुहैया कराती है, जैसे एस्टेट प्लानिंग में विल यानी वसीयत बेहद जरूरी होती है. अगर वसीयत नहीं होगी तो कोर्ट को अधिकार होता है कि वो संपत्ति का बंटवारा करे. एस्टेट प्लानिंग से परिवार के झगड़े से बचने में भी मदद होती है.
किसी रिश्तेदार की मृत्यु से संपत्ति को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच खून-खराबे की शुरुआत हो सकती है. लेकिन एस्टेट प्लानिंग के जरिए विवाद को खत्म किया जा सकता है. इसके लिए घर का मुखिया पहले ही समय रहते संपत्ति का बंटवारा कर दे.
इसका उद्देश्य पूरी सुरक्षा की भावना के साथ अपने प्रियजनों का ख्याल रखना है. साथ ही अपने पूरे जीवन की कड़ी मेहनत और सफलता के साथ किसी पर भरोसा करना है.