कुछ दिन पहले तक बद्री बहुत खुश थे. खुशी की वजह थी बच्चे का भविष्य सुरक्षित होना. उनके पास एक प्रॉपर्टी थी जिसे उन्होंने अपने 12 साल के बेटे को गिफ्ट कर दिया. इससे उन्हें तीन फायदे हुए एक तो हर महीने की इनकम बंध गई क्योंकि प्रॉपर्टी किराए पर चढ़ी हुई है. बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो गया और किराए की कमाई उनकी इनकम में नहीं जुड़ेगी तो ज्यादा टैक्स भी नहीं भरना पड़ेगा, लेकिन बद्री की ये खुशी ज्यादा समय तक नहीं रही. उनके एक परिचित ने बताया कि बच्चे का भविष्य भले ही सुरक्षित हो गया है, लेकिन टैक्स तो तुम्हें ही भरना पड़ेगा. प्रॉपर्टी तोहफे में देने के बावजूद बद्री की अपनी जेब से क्यों टैक्स जाएगा? ये उनकी समझ से बाहर है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों होगा?
आयकर कानून 1961 के तहत एक वित्त वर्ष में 50 हजार रुपए से ज्यादा का गिफ्ट मिलने पर टैक्स देना होता है. टैक्स तोहफा लेने वाले व्यक्ति को चुकाना होता है. हालांकि, आयकर कानून के तहत ‘रिलेटिव’ की परिभाषा में आने वालों से कितनी भी कीमत का गिफ्ट मिले उसपर कोई टैक्स नहीं है. रिश्तेदार की परिभाषा में पति या पत्नी, भाई या बहन, माता या पिता, पति या पत्नी के माता-पिता समेत अन्य शामिल हैं.
बद्री ने अपने बेटे को प्रॉपर्टी तोहफे में दी है. ऐसे में प्रॉपर्टी गिफ्ट करते समय दोनों पर किसी भी तरह की टैक्स देनदारी नहीं बनेगी. अब बात आती है कि कब और क्यों बद्री को बेटे को दिए गिफ्ट पर टैक्स चुकाना होगा. आमतौर पर एक व्यक्ति पर टैक्स तभी लगता है. जब वो खुद से कोई कमाई करता है, लेकिन कुछ विशेष मामलों में जब कोई दूसरा व्यक्ति कमाई करता है. तो वो कमाई भी आपकी ही इनकम में जुड़ जाती है. इस तरह के मामले में जहां दूसरे व्यक्ति की इनकम आपकी इनकम में जुड़ती है. उसे क्लबिंग ऑफ इनकम या इनकम क्लबिंग कहते हैं.
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 60 से 64 में क्लबिंग से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं. सेक्शन 64 बताता है कि कब और कैसे स्पाउस, यानी पति या पत्नी, माइनर चाइल्ड यानी 18 साल से कम उम्र के बच्चे की कमाई आपकी इनकम में जुड़ जाती है. सेक्शन 64 (1A) नाबालिग बच्चे की कमाई को कवर करता है. इसमें सौतेले और गोद लिए बच्चे भी शामिल हैं. सेक्शन 64 (1A) के तहत, अगर नाबालिग बच्चे की कोई कमाई होती है. तो वो उसके पैरेंट्स की कमाई में जुड़ जाती है. पैरेंट्स यानी माता या पिता में से जिसकी कमाई ज्यादा होगी. बच्चे की कमाई उसकी इनकम में जुड़ जाएगी. अगर माता-पिता का तलाक हो जाता है. तो बच्चे की इनकम उस शख्स के साथ क्लब होगी. जो उसका legal guardian, यानी कानूनी अभिभावक है.
क्लबिंग ऑफ इनकम तब तक लागू रहेगी. जब तक कि बच्चा बालिग नहीं हो जाता है. बालिग होने के बाद यह कमाई उसके अपने हाथों में टैक्सेबल होगी. आयकर कानून के तहत तीन ऐसी स्थितियां हैं. जब नाबालिग बच्चे की इनकम माता या पिता की कमाई में नहीं जुड़ती है. पहली, सेक्शन 80U में बताई गई दिव्यांगता यानी Disability से पीड़ित बच्चे की इनकम माता या पिता की इनकम के साथ नहीं जुड़ेगी. दूसरी, अगर बच्चा कोई मैनुअल वर्क करके कमाई करता है तो ऐसी इनकम भी पैरेंट्स की कमाई में नहीं जुड़ेगी. तीसरी, अगर आपका बच्चा किसी गेम शो या एक्टिविटी में हिस्सा लेता है और अपने स्किल या टैलेंट से कोई आय अर्जित करता है, तो ये कमाई भी माता-पिता की इनकम में नहीं जुड़ेगी.
अगर आप भी बद्री की तरह इनकम छिपाने के इरादे से अपने नाबालिग बच्चे या पत्नी के नाम पर कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं या FD कराते हैं. ये सोचकर कि उससे जो रिटर्न आएगा, उसपर आपको कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा. तो क्लबिंग के प्रावधान का ध्यान रखें. ऐसी इनकम पर टैक्स आपको देना पड़ सकता है. एक बात और ध्यान रखें अगर आप इस तरह से टैक्स बचाते हैं. तो इसे टैक्स चोरी माना जा सकता है और पेनाल्टी भरनी पड़ सकती है. यही नहीं मुकदमेबाजी तक की नौबत आ सकती है.