सरकार तो है जमींदार
तो बात ये है कि भले ही सरकार की डिसइन्वेस्टमेंट की प्रोग्रामिंग परवान नहीं चढ़ पा रही है. लेकिन, अब उसने जमीनें बेचकर कमाई का पुख्ता प्लान बना लिया है
आपको पता है देश में सबसे ज्यादा जमीनें किसके पास हैं. लगाइए अंदाजा…चलिए हम बता देते हैं. सरकार है देश की सबसे बड़ी जमींदार…आप सोच रहे होंगे कि होगी जमीन सरकार के पास…इसमें क्या बड़ी बात है. लेकिन, अगर हम आपको ये बताएं कि सरकार के पास इतनी जमीन है कि वो दिल्ली जितने बड़े 9 शहर बसा सकती है तो आपकी आंखें फटी रह जाएंगी. जी हां… शहर से लेकर गांवों तक सरकारी मिल्कियत हर जगह फैली है. इन जमीनों का एक बड़ा हिस्सा पब्लिक सेक्टर कंपनियों के हाथ है.
बड़े-बड़े शहरों में बेशकीमती और प्राइम लैंड इन कंपनियों के पास हैं. अब चक्कर क्या है कि इन रियल्टी एसेट्स में से तमाम हिस्सा ऐसे ही बेकार या अनयूज्ड पड़ा हुआ है. कंपनियां इन्हें इस्तेमाल नहीं कर पा रहीं. इसलिए अब सरकार की नजर अपनी जमीनें बेचकर पैसा जुटाने की है. इसके लिए एक नेशनल लैंड मॉनेटाइजेशन कंपनी यानी NLMC भी बना दी गई है. NLMC में एक 13 सदस्यी बोर्ड होगा, जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्र के प्रोफेशनल्स होंगे.
बिक्री के पहले चरण के लिए 9 सरकारी कंपनियों की 3,479 एकड़ जमीन और बिल्डिंगों की पहचान भी कर ली गई है. बीएसएनएल और एमटीएनएल की कुल 17 संपत्तियों की पहचान की गई है, जिन्हें बेचकर 23,358 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे. दरअसल, इन जमीनों को बेचने की योजना तो सरकार के दिमाग में काफी पहले से चल रही थी. पिछले कुछ वर्षों से जमीनों की जानकारी भी जुटाई जा रही थी.
41 मंत्रालय और 22 PSU अपने लैंड एसेट्स की जानकारियां सरकार को दे भी चुके हैं. इसके हिसाब से सरकार के पास 13,505 वर्ग किलोमीटर लैंड है. पूरी जानकारियां आने पर ये आंकड़ा और बड़ा हो सकता है. मौजूदा जानकारी के मुताबिक सरकार के पास जितनी जमीन है, उसमें अभी 9 दिल्ली जैसे शहर बसाए जा सकते हैं.
दिल्ली का एरिया 1483 वर्ग किलोमीटर है. डिफेंस मिनिस्ट्री जमीन के मामले में सबसे रईस है. इसके पास कुल सत्रह लाख चौवन हजार एकड़ जमीन है. इसमें से 16 लाख एकड़ जमीन छावनियों से बाहर है. 2011 में CAG की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय की 81,000 एकड़ से ज्यादा जमीन बेकार पड़ी है. अब रेलवे को ले लीजिए…भारतीय रेलवे के पास करीब दस लाख पैंतालीस हजार हेक्टेयर जमीन है.
इसमें से 378,000 हेक्टेयर जमीन का इस्तेमाल रेलवे ऑपरेशन के लिए हो चुका है या प्रस्तावित है. 43,000 हेक्टेयर जमीन ऐसी है जिसे फालतू माना गया है. ये जमीन ही 40 अरब डॉलर की है. ऐसे ही एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया है. इसके पास 20,400 हेक्टेयर जमीन है. एयरपोर्ट के पास हैं ये जमीनें…अब समझ लीजिए कितनी कीमती होंगी.
देश के 13 प्रमुख पोर्ट ट्रस्ट के पास भी 250,000 एकड़ से ज्यादा जमीन का मालिकाना हक है. ये जमीन प्रमुख पोर्ट केआसपास हैं और बेकार पड़ी हैं.
प्रमुख पोर्ट की लैंडहोल्डिंग्स
प्रमुख पोर्ट लैंड होल्डिंग्स एकड़ में
पारादीप 534
न्यू मैंगलोर 2,928
विशाखापट्नम 587
मोरमुगांव 6,382
एन्नोर 1,047
जवाहर लाल नेहरू 7,576
मुंबई 1,859
कोलकाता 3,000
चेन्नई 2,035
हल्दिया (कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का हिस्सा ) 7,000
तूतीकोरिन 2,132
कांडला 220,416
कोचीन 2,353
कुल (लगभग) 257,000
विभिन्न मंत्रालयों के पास मौजूद लैंड बैंक
मंत्रालय लैंड होल्डिंग्स वर्ग किमी में
रेलवे 2929.6
कोयला 2580.92
ऊर्जा 1806.69
भारी उद्योग 1209.49
शिपिंग 1146
स्टील 608.02
कृषि 589.07
गृह मंत्रालय 443.12
एचआरडी 409.43
रक्षा 383.62 (आंशिक जानकारी)
तो बात ये है कि भले ही सरकार की डिसइन्वेस्टमेंट की प्रोग्रामिंग परवान नहीं चढ़ पा रही है. लेकिन, अब उसने जमीनें बेचकर कमाई का पुख्ता प्लान बना लिया है.