घर खरीदना जीवन के सबसे अहम वित्तीय फैसलों में से एक है. प्रॉपर्टी लेने के समय सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाली कहावत सटीक बैठती है. प्रॉपर्टी ट्रांसफर के बाद मालिकाना हक (टाइटल) हासिल होना सबसे अहम है. कई तरीकों से प्रॉपर्टी ट्रांसफर की जाती है. इनमें सेल डीड, गिफ्ट डीड, वसीयत से लेकर पावर ऑफ अटॉर्नी (मुख्तार आम) तक शामिल हैं. आइए जानते हैं प्रॉपर्टी ट्रांसफर पर मालिकाना हक पाने के तरीके क्या हैं?
सेल डीड क्या होती है सेल डीड संपत्ति हस्तांतरण का सबसे आम तरीका है. इसे ट्रांसफर डीड या रजिस्ट्री (बयनामा) के नाम से भी जाना जाता है. जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को प्रॉपर्टी बेचता है तो दोनों पक्षों के बीच सेल डीड होती है. सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में सेल डीड को पंजीकृत कराना पड़ता है. जनरल स्टाम्प ड्यूटी चुकानी होती है. सेल डीड के बाद संपत्ति के मालिकाना हक नए मालिक को ट्रांसफर हो जाते हैं…
गिफ्ट डीड आमतौर पर प्रॉपर्टी उपहार या दान में देने के लिए गिफ्ट डीड का इस्तेमाल किया जाता है… सामान्यत: गिफ्ट डीड में पैसों का लेनदेन नहीं होता है… सिर्फ स्टाम्प ड्यूटी चुकानी होती है और पंजीकरण के बाद टाइटल ट्रांसफर हो जाता है… उत्तर प्रदेश में 5,000 रुपए स्टाम्प और 1 हजार रुपए प्रोसेसिंग फीस के जरिए परिवार के भीतर प्रॉपर्टी ट्रांसफर की जा सकती है… सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है…
वसीयत के जरिए प्रॉपर्टी का ट्रांसफर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अपनी चल और अचल संपत्ति वसीयत के जरिए किसी दूसरे व्यक्ति को सौंप सकता है… व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत वह व्यक्ति स्वयं उस संपत्ति का मालिक हो जाएगा, जिसके नाम वसीयत की गई है… विल के जरिए मिली प्रॉपर्टी पर स्टाम्प ड्य़ूटी नहीं देनी पड़ती है.
पावर ऑफ अटॉर्नी की पावर कम
कई मामलों में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) के जरिए प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त होती है. दरअसल, पावर ऑफ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज है जो किसी व्यक्ति को प्रॉपर्टी मालिक (टाइटल होल्डर) की ओर से संपत्ति की देखरेख, वाद-विवाद, किराया वसूलना और विशेष परिस्थितियों में संपत्ति विक्रय का अधिकार प्रदान करता है. कई बार लोग पावर ऑफ अटॉर्नी और कब्जा लेकर प्रॉपर्टी खरीद लेते हैं. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि पावर ऑफ अटार्नी के जरिए टाइटल ट्रांसफर नहीं होता है मतलब मालिकाना हक में बदलाव नहीं होता है. मुख्तारआम प्रदानकर्ता (टाइटल होल्डर) के जीवित रहने तक ही वैध है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में कहा कि जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए अचल संपत्ति की बिक्री कानूनी तौर पर सही नहीं है. अचल संपत्ति को सिर्फ रजिस्टर्ड डीड के जरिए ही बेचा जा सकता है.
दाखिल-खारिज क्यों है जरूरी प्रॉपर्टी ट्रांसफर के बाद दाखिल खारिज जरूरी होता है. जब भी कोई संपत्ति बेची या दी जाती है तो सरकारी रिकॉर्ड (नगर निगम/तहसील/विकास प्राधिकरण) से एक व्यक्ति का नाम हटा दूसरे का नाम शामिल करने की प्रक्रिया दाखिल-खारिज कहलाती है. लीज पर ली हुई संपत्ति इसके दायरे से बाहर है. मुआवजे की स्थिति में दाखिल खारिज की काफी अहम है. दाखिल खारिज नहीं होने पर मुआवजा पुराने मालिक को ही मिलेगा. इसके अलावा, लोन लेने में भी दिक्कत आती है.
एडवोकेट सचिन सिसोदिया बताते हैं कि प्रॉपर्टी खरीदते समय सभी दस्तावेजों की जांच कर लेनी चाहिए. सबसे पहले आपको एग्रीमेंट टू सेल करवाना चाहिए उसके बाद रजिस्ट्री या सेल डीड करवानी होती है. अगर आप किसी अथॉरिटी का फ्लैट या प्लॉट ले रहे हैं तो दाखिल-खारिज भी करवा लें.
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