जब आप रिटायरमेंट के बारे में सोचते हैं तो आपके मन में क्या आता है? बुढ़ापा, बच्चों पर डिपेंडेंसी या किसी धार्मिक स्थल पर बस जाना. आमतौर पर आम इंसान पूरा जीवन बच्चों को सेटल करने में निकाल देता है. बुढ़ापे में जिस शहर में बच्चे नौकरी करते हैं बुजर्ग वहीं बाकी का जीवन गुजार देते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बुढ़ापे में किसी पर डिपेंड नहीं रहना चाहते हैं और जीवन के आखिरी पड़ाव को अपने तरह से जीना चाहते हैं.
60 साल की उम्र पार कर चुके लोग सीनियर सिटीजन या बुजुर्ग कहलाते हैं. साल 1950 के बाद से इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब 7.6 करोड़ सीनियर सिटीजन थे, जो साल 2011 में बढ़कर 10.4 करोड़ पर पहुंच गए. यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) के मुताबिक, यह आंकड़ा साल 2025 तक 17.3 करोड़ और साल 2050 तक बढ़कर लगभग 24 करोड़ होने का अनुमान है. कुल आबादी में सीनियर सिटीजन की हिस्सेदारी साल 2015 में 8 फीसदी से बढ़कर साल 2050 में 19 फीसदी हो जाएगी.
देश में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सीनियर लीविंग होम या रिटायरमेंट होम का कॉन्सेप्ट लाया गया है. साल 2000 के बाद रिटायरमेंट होम्स ने रफ्तार पकड़ी है. मार्केट रिसर्च एंड एडवाइजरी फर्म Mordor Intelligence की एक स्टडी के मुताबिक, मौजूदा वर्ष यानी साल 2023 में सीनियर लिविंग होम्स का मार्केट साइज करीब 10 अरब डॉलर है और इसके साल 2028 तक हर साल करीब 10 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने का अनुमान है.
क्यों बढ़ रही डिमांड और क्या है वजह
रेगुलर हाउसिंग यानी आम लोगों के लिए बनने वाले मकान शहर के सेंटर में होते हैं जबकि बुजुर्गों के लिए बनने वाले सीनियर लिविंग होम पल्यूशन और ट्रैफिक से दूर शहर के बाहरी इलाके यानी Outskirts में बनाए जाते हैं. हिल स्टेशन भी इस तरह के घरों के लिए अच्छे डेस्टिनेशन हैं. सीनियर लिविंग होम 55 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों के रहने के लिए है. कुछ मामलों में यह एज 50 वर्ष हो सकती है. हालांकि, आप किसी भी उम्र में रिटायरमेंट होम खरीद सकते हैं, लेकिन आप इसमें 55 साल की उम्र के बाद ही शिफ्ट हो पाएंगे. तब तक के लिए इसे किराए पर उठा सकते हैं. रेगुलर हाउसिंग के मुकाबले सीनियर लिविंग होम में फैसिलिटी का सबसे बड़ा अंतर होता है. घर को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि बुजुर्ग व्यक्ति उसमें रखें हर चीज तक आसानी से पहुंच सके.
क्या सीनियर सिटीजन के साथ उनके बच्चे रह सकते हैं?
सीनियर लिविंग होम को पुराने ओल्ड ऐज होम जैसा न सोचें, जहां बूढ़े और अकेले लोग बुरी हालत में रहते थे. आज के रिटायरमेंट होम्स शानदार कॉम्प्लेक्स हैं, जहां फूड, हाउस कीपिंग, हेल्थकेयर और सिक्योरिटी का पूरा ख्याल रखा जाता है. इनमें डाइनिंग यानी खाने-पीने, मेड और क्लिनिंग सर्विस, घर और कॉमन एरिया में न फिसलने वाले टाइल्स, होल्डिंग बार और रैम्प, ग्रॉसरी स्टोर, धार्मिक स्थल जैसे मंदिर और टैरेस गार्डन जैसी सुविधाएं मिलती हैं. मेडिकल, वेलनस और एक्टिविटी सर्विस की बात करें तो एंबुलेंस, बेसिक क्लीनिक, योग एवं मेडिटेसन सेंटर, सीनियर सिटीजन फ्रैंडली हेल्थ क्लब या जिम, डाइटिशियन एंड न्यूट्रिशनिस्ट की सर्विस और थियेटर जैसी सर्विसेज मिलती हैं. बढ़ते क्राइम रेट को देखते हुए 24 घंटे सिक्योरिटी और CCTV मॉनिटरिंग है. हर प्रोजेक्ट में सुविधाएं अलग-अलग हो सकती हैं.
किस तरह के लोगों को खरीदना चाहिए?
भारत में दक्षिणी शहर जैसे बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और कोयम्बटूर सीनियर लिविंग होम्स के केंद्र हैं. इसके बाद पश्चिमी और उत्तरी शहरों का नंबर आता है. इस तेजी की वजह खुशनुमा मौसम, बेहतर कनेक्टिविटी और अच्छी हेल्थकेयर सेवाएं हैं. सीनियर लिविंग प्रोजेक्ट्स में दक्षिणी शहरों की हिस्सेदारी 70 फीसदी से अधिक है. जितने भी मेट्रो शहर यानी महानगर है वहां आपको रिटायरमेंट होम मिल जाएंगे. इनमें दिल्ली-NCR, मुंबई, चेन्नई, पुणे और उसके पास स्थित हिल स्टेशन लवासा, जयपुर, कोयम्बटूर, बेंगलुरु और हैदराबाद शामिल हैं. देहरादून, ऋषिकेश, भुवनेश्वर, अहमदाबाद, भोपाल और वडोदरा में भी आप सीनियर लिविंग होम देख सकते हैं. देश में कई और शहरों में भी इस तरह के घर मौजूद हैं.
80 फीसदी सीनियर लिविंग होम्स की कीमत 40 लाख से शुरू होकर 1 करोड़ रुपए तक जाती है. लग्जरी रिटायरमेंट होम की संख्या काफी कम है लेकिन इसकी कीमत ढाई करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक है. घर की कीमत प्रोजेक्ट की लोकेशन और उसमें मिलनी वाली सुविधाओं के हिसाब से तय होती है. अगर आप भी बुढ़ापे में सुकून और सारी सुख-सुविधाओं के साथ एक्टिव लाइफस्टाइल चाहते हैं तो सीनियर लिविंग होम आपके लिए सही विकल्प हो सकता है. रिटायरमेंट होम खरीदने से उसमें मिलने वाली सर्विस पर जरूर नजर डालें. आपकी जरूरत की सभी फैसिलिटी होनी चाहिए. रियल एस्टेट से जुड़े जानकारों का मानना है कि आने वाले वक्त में इस तरह के घरों की पहुंच टियर-2 और छोटे शहरों तक होगी.