निवेशकों को लुभाने के लिए बिल्डर बड़े-बड़े वादे करते हैं. इन्हीं में एक है ‘एश्योर्ड रिटर्न’. ‘एश्योर्ड रिटर्न’ सुनने में अच्छा है. लेकिन हकीकत से काफी जुदा है. बिल्डर एश्योर्ड रिटर्न का लॉलीपॉप दिखा घर खरीदारों समेत निवेशकों को फंसाते हैं. बाद में पैसे और यूनिट की डिलिवरी के वक्त मुंह फेर लेते हैं.
क्या है ‘एश्योर्ड रिटर्न स्कीम’?
‘एश्योर्ड रिटर्न’ एक पॉपुलर टर्म है, जिसका इस्तेमाल ग्राहकों को लुभाने के लिए कमर्शियल और रेसिडेंशियल रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स में सबसे ज्यादा किया जाता है. डेवलपर पजेशन मिलने तक ग्राहकों को 12-18 फीसदी का एश्योर्ड रिटर्न ऑफर करते हैं. इस तरह के विज्ञापनों के जरिए लोगों को उनका पैसा ज्यादातर अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट करने के लिए लुभाया जाता है.
एश्योर्ड रिटर्न स्कीम गैर-कानूनी क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अनिल कर्णवाल बताते हैं कि सरकार ने The Banning of Unregulated Deposit Scheme (BUDS) एक्ट 2019 बनाया है, जिसे जुलाई 2019 में नोटिफाइ किया गया. इस कानून का मकसद अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स पर रोक लगाना और उसे गैर-कानूनी घोषित करना है. ऐसे में अगर कोई रियल एस्टेट कंपनी एश्योर्ड रिटर्न जैसी स्कीम निकालती है तो यह कानून का उल्लंघन है. इसके अलावा, मार्केट रेगुलेटर सेबी के भी कुछ प्रतिबंध हैं, जिसके चलते एश्योर्ड रिटर्न ‘अवैध’ घोषित है. बावजूद इसके डेवलपर्स इस तरीके की स्कीमें अलग-अलग नामों से लाते हैं. इन्वेस्टर्स के साथ ठगी करने के उद्देश्य से लाई जाने वाली इन स्कीम्स पर रोक के लिए रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट (रेरा) में संशोधन किया जाना चाहिए.
एश्योर्ड रिटर्न स्कीम पर फैसला
हरियाणा रेरा ने फरवरी 2022 में मधुश्री खेतान बनाम वाटिका लिमिटेड के मामले में अहम फैसला दिया. हरियाणा रेरा ने बिल्डर वाटिका लिमिटेड को एग्रीमेंट में तय किए गए एश्योर्ड रिटर्न रेट के मुताबिक एलॉटी को भुगतान करने का आदेश दिया. साथ ही कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में निर्धारित यूनिट का पजेशन देने का भी निर्देश दिया है.
निवेशकों के कानूनी विकल्प
कर्णवाल बताते हैं कि डेवलपर या तो वादे के मुताबिक रिटर्न नहीं देते हैं या फिर पेमेंट में डिफॉल्ट करते हैं. ऐसे में इन्वेस्टर्स के पास रेरा, कंज्यूमर कोर्ट और सिविल कोर्ट में जाने का विकल्प है. हालांकि, अगर ये साबित हो जाता है कि किसी घर खरीदार या इन्वेस्टर्स ने जो एश्योर्ड रिटर्न लिया है, उसका मुख्य उद्देश्य कैपिटल गेन है, तो ये कंज्यूमर की डिफिनेशन में नहीं आएगा. ऐसे में कंज्यूमर कोर्ट में जाने का अधिकार खत्म हो जाता है.
रियल एस्टेट डेवलपरों ने बदला पैटर्न
घर खरीदार समेत इन्वेस्टर्स को एश्योर्ड रिटर्न के साथ आने वाले डेवलपरों के आकर्षक विज्ञापनों से बचना चाहिए और अपनी मेहनत की कमाई को ऐसी स्कीम्स में इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए. दरअसल, बिल्डर आपको एक ऐसी चीज का एश्योरेंस देते हैं, जो भविष्य में होगी, ऐसे में इस वादे में नहीं फंसना चाहिए. रियल एस्टेट डेवलपरों की एश्योर्ड रिटर्न को लेकर सिर्फ शब्दावली बदली है, लेकिन उनका मकसद पुराना ही है. अब डेवलपर्स ऐसे टर्म का इस्तेमाल नहीं करते हैं, जो पहली बार में ही गैर-कानूनी दिखाई पड़ते हैं. इसके अलावा, कोरोना महामारी के बाद इस तरह की स्कीम्स में थोड़ी गिरावट आई है क्योंकि बिल्डरों के लिए कैपिटल जुटाना मुश्किल हो गया है.