कई मकान मालिक किरायेदार की ओर से अनुचित दावेदारी और लंबे कानूनी विवाद के डर से अपनी प्रॉपर्टी किराये पर देने से बचते हैं. अगर आप की कोई प्रॉपर्टी है और आप उसे किराये पर देना चाहते हैं तो इसका एक अच्छा तरीका है. ये तरीका है लीव ऐंड लाइसेंस (Leave & License) एग्रीमेंट का.
आजकल कुछ शहरों में किराये के समझौते के बजाय, लीव एंड लाइसेंस (Leave & License) समझौते किया जा रहा है. आइए आपको बताते हैं लाइसेंस एग्रीमेंट के बारे में और इससे लैंडलॉर्ड को क्या फायदा होता है –
रेंट या लीज एग्रीमेंट (डीड) बनाते वक्त आपको ध्यान रखना चाहिए की जब आप रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं तो एक निश्चित समय के लिए किरायेदार का आपकी प्रॉपर्टी पर कब्जा हो जाता है. कानूनी रूप से जब तक किराया दिया जा रहा है तब तक मकान मालिक किरायेदार को नहीं निकाल सकता है.
हालांकि, लेकिन लीव एंड लाइसेंस में ऐसा नहीं है. कानूनी रूप से ये इंडियन लीज एक्ट के तहत आता है. इसमें आप किरायेदार को सिर्फ एक राइट या आज्ञा देते हैं कि वह सिर्फ आपकी प्रॉपर्टी का यूज कर सकता है, लेकिन कानूनी रूप से कब्जा मकान मालिक के पास ही रहेगा.
मान लीजिए आपकी दो मंजिला इमारत है जिसमें आप नीचे रहते हैं. आप पहली मंजिल का कमरा किराये पर देना चाहते हैं. ऐसे में आप लीव एंड लाइसेंस में लिखेंगे कि पूरी बिल्डिंग आपके पास है और फर्स्ट फ्लोर किरायेदार इस्तेमाल कर सकता है.
यानी लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत मकान मालिक के पास प्रॉपर्टी में प्रवेश कर इसका इस्तेमाल करने का अधिकार होता है और जिसे प्रॉपर्टी का लाइसेंस दिया गया हो, यानी किरायेदार इसका विरोध नहीं कर सकता है.
लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट (Leave & License) में, किराये पर मकान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंसकर्ता कहा जाता है, और मकान को किराये पर लेने वाले व्यक्ति को लाइसेंसधारी कहा जाता है.
चूंकि रेंट एग्रीमेंट, रेंट कंट्रोल कानून के तहत आता है इसलिए यह किरायेदार को ज़्यादा हक देता है और ज्यादा उसी के पक्ष में होता है. ये मकान मालिक को ज्यादा किराया वसूलने से रोकते हैं और किरायेदार को प्रॉपर्टी पर ज्यादा मालिकाना हक देते हैं.
प्रॉपर्टी बेचे जाने की सूरत में लीज पर कोई असर नहीं पड़ता है, जबकि लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत किराये पर दी गई प्रॉपर्टी अगर बिक जाए तो पुराने मकान मालिक और किरायेदार के बीच का एग्रीमेंट स्वतः खत्म हो जाता है.
लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट मकान मालिक के पक्ष में ज़्यादा होता है क्योंकि इससे किरायेदार किसी भी हालत में मकान मालिक की प्रॉपर्टी को हथिया नहीं सकता है.
इसके अलावा, प्रॉपर्टी में कोई बड़े बदलाव भी नहीं किए जा सकते हैं. कानून के अनुसार आप तकनीकी रूप से एक किरायेदार नहीं हैं और इसलिए आप कुछ अधिकार से वंचित हैं.
मकान मालिक या किरायेदार में जो भी लीज एग्रीमेंट को खत्म करना चाहता है, उसे दूसरे को नोटिस देना पड़ता है. नोटिस पीरियड खत्म होने के बाद ही लीज एग्रीमेंट भी खत्म हो सकता है, जबकि लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट में किसी नोटिस पीरियड की जरूरत नहीं होती है.