जो लोग भारत छोड़कर काफी अरसे पहले शत्रु देश चीन या पाकिस्तान में बस गए है और वहां की नागरिकता ले ली है. ऐसे लोगों की संपंत्तियों को सरकार बेचकर रुपए जुटाने जा रही है. सरकार ने पहले राउंड में उत्तर प्रदेश के अमरोहा, मुजफ्फरनगर और अलीगढ़ में मौजूद 31 ऐसी “शत्रु संपत्तियों” की पहचान की है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसका नियंत्रण और प्रबंधन भारत के शत्रु संपत्ति संरक्षक कार्यालय (CEPI) को सौंप दिया है.
अधिकारियों के अनुसार, शत्रु संपत्ति निपटान समिति (EPDC) ने 1 करोड़ रुपए से कम कीमत वाली 31 “शत्रु संपत्तियों” की एक सूची बिक्री के लिए केंद्रीय प्राधिकरण को भेजी है. इन संपत्तियों का किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या उस समय लागू किसी भी कानून के तहत कोई भी मामला लंबित नहीं है और न ही ऐसी किसी संपत्ति का कोई वारिस पाया गया है. केंद्र ने “शत्रु संपत्तियों” को बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
क्या होती हैं शत्रु संपत्तियां? शत्रु संपत्तियां ऐसे लोगों की प्रॉपर्टी होती है जो विभाजन के दौरान या 1962 और 1965 के युद्धों के बाद भारत छोड़ने के बाद पाकिस्तान और चीन की नागरिकता ले चुके हैं और उनकी प्रॉपटी यहां रह गई है. सीईपीआई को केंद्र की पूर्व मंजूरी के साथ हस्तांतरण की बिक्री द्वारा “शत्रु संपत्तियों” का निपटान करने का अधिकार है. साल 2020 में, शत्रु संपत्तियों के निपटान की निगरानी के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह स्थापित किया गया था. पहले देश भर में 9406 “शत्रु संपत्तियों” का मूल्य 1 लाख करोड़ रुपए आंका गया था, लेकिन बाद में ऐसी लगभग 3,000 और संपत्तियों की पहचान की गई. शत्रु संपत्ति अधिनियम में 1977 में और हाल ही में 2017 में राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान, के उत्तराधिकारियों की ओर से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में फैली उनकी संपत्तियों पर दावा किए जाने के बाद संशोधित किया गया था.
प्रॉपर्टी के अलावा ये चीजें भी हैं शामिल “शत्रु संपत्तियों” में अचल संपत्तियों के अलावा शेयर, सोने और चांदी के आभूषण भी शामिल हैं. अधिकारियों के अनुसार, सीईपीआई ने 996 कंपनियों में लगभग 6.5 करोड़ शत्रु शेयर दर्ज किए हैं. पाकिस्तान जाने वालों की “शत्रु संपत्तियों” की सूची में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है, जबकि मेघालय के बाद पश्चिम बंगाल में चीनी नागरिकों की संपत्तियों की संख्या सबसे ज्याद है.
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