बिल्डर के दिवालिया होने के बाद उसके प्रोजेक्ट में रह रहे घर खरीदारों को कोई परेशानी न हो इसके लिए सरकार Insolvency and Bankruptcy Code यानी IBC में बदलाव करने जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकार अब ऐसे घरों को दिवालिया प्रक्रिया से बाहर करने के लिए IBC में बदलाव करने की तैयारी में है. संभावना जताई जा रही है कि सरकार संसद के मानसून सत्र में आईबीसी में संशोधन के लिए एक विधेयक ला सकती है. रियल एस्टेट दिवालियापन को लेकर कानून में प्रस्तावित बदलावों के संबंध में मंत्रालय रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) के साथ बातचीत कर रहा है.
क्या है मौजूदा व्यवस्था?
कई बार बिल्डर जमीन के लिए स्थानीय प्राधिकरण को भुगतान करने में विफल रहता है और घर खरीदार को कब्जा प्रमाणपत्र नहीं मिल पाता लेकिन वो खरीदे गए घर में रहने लगते हैं. ऐसे में IBC के तहत इन घरों पर भी कार्रवाई होती है. घर खरीदार भी सवालों के घेरे में आते हैं क्योंकि ऐसे घरों को बिल्डर की इन्वेंट्री का ही हिस्सा माना जाता है. ऐसी स्थिति में अलॉटीज़ और बिल्डर के बीच कोर्ट में लड़ाई चलती रहती है. कई बार नियम मुताबिक 10 फीसदी अलॉटीज़ इकट्ठा न होने पर बिल्डर के खिलाफ़ केस भी दर्ज नहीं हो पाता.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
आईबीसी एक्सपर्ट एवं पूर्व बैंक सुरेश कुमार बंसल कहते हैं कि विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से ग्राहकों को फायदा होगा लेकिन यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है. इसके लिए नियमों को लागू करने की आवश्यकता होगी ताकि इस प्रक्रिया को अपनाने में कोई भ्रम या अस्पष्टता न हो.
बता दें मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि डेवलपर्स को निर्माण के लिए आवंटित भूखंडों के लिए नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों का हजारों करोड़ रुपये का बकाया है. नियामक इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि दिवालियापन न्यायाधिकरणों आने वाली कंपनियों के कुल मामलों में लगभग पांचवां हिस्सा रियल एस्टेट कंपनियों का है.