रुपए में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. इसी तरह के एक और प्रयास में ऐसी व्यवस्था तैयार की जा रही है जिसके तहत अगर कोई देश या कोई विदेशी कंपनी भारत सरकार या भारतीय कंपनियों से कर्ज लेते हैं तो उस कर्ज का भुगतान रुपए में लिया जाएगा. इस व्यवस्था को उन देशों के साथ बढ़ावा दिया जाएगा जिनसे भारत आयात ज्यादा करता है और निर्यात कम. इस तरह के प्रयासों के जरिए सरकार रुपए को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर स्थापित करना चाहती है.
भागीदार देशों के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक रुपए में निर्यात और आयात दोनों से दोनों भागीदार देशों के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा और पारस्परिक लाभ होगा. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय के मुताबिक अगर आप निर्यात और निवेश के दृष्टिकोण से देखें तो यह भारत के लिए अच्छा है और इससे भारत को उन देशों में निर्यात बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, जिनके पास विदेशी मुद्रा की कमी है. दरअसल, उन देशों के पास ज्यादा विकल्प नहीं है, ऐसे में वे भारत के साथ इस पर काम करना चाहेंगे.
हालांकि उनका कहना है कि यह जानने की जरूरत है कि क्या यह मैकेनिज्म रुपए में सॉवरेन कर्ज के रूप में होगा या व्यक्तिगत कंपनियों के बैंक वित्तपोषण के माध्यम से होगा. उन्होंने कहा कि भारत से आयात के वित्त पोषण के लिए रुपए में उधार लेने की सुविधा से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों वाले देशों और विदेशी मुद्रा की कमी वाले देशों को फायदा हो सकता है, जिनमें अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कुछ देश शामिल हैं.