घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को बंद करने या उनके निजीकरण की योजना अधर में फंस चुकी है. वित्त वर्ष 2022 के लिए पेश बजट में सरकार ने 176 सरकारी कंपनियों के निजीकरण या बंद करने का फैसला किया था लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है. कुछ मंत्रालय अपनी कंपनियों के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं.. और कुछ जगहों पर अधिकारियों ने आपत्ति जताई है. आशंका जताई जा रही है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इस दिशा में सरकार को बड़ी सफलता नहीं मिलेगी.
क्या थी योजना?
सरकार वित्त वर्ष 2022 के बजट में यह नीति लेकर आई थी कि गैर रणनीतिक (non-strategic) सेक्टर के 176 CPSEs का या तो निजीकरण कर दिया जाएगा या पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा. लेकिन सरकार के अंदर ही इसके विरोध और शीर्ष नेतृत्व के कोई साफ निर्णय न ले पाने की वजह से यह योजना फिलहाल अधर में दिख रही है. एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि मई 2024 में लोकसभा चुनाव तक भी नहीं लगता कि इस हालात में कोई बदलाव हो पाएगा. यानी मौजूदा सरकार तो इस मामले में ही शायद ही कोई निर्णय ले पाए. शुरुआती चरण में जिन 60 कंपनियों की विनिवेश के लिए पहचान की गई है, उनमें अगर देखें तो स्टील सेक्टर के अलावा और किसी में कोई प्रगति नहीं दिख रही.
निजीकरण का विरोध
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय सहित कई विभागों के अधिकारी अपने तहत आने वाले CPSEs के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार के निजीकरण योजना का विपक्ष भी विरोध करता रहा है, लेकिन सरकार निजीकरण या विनिवेश को लेकर दृढ़ दिखती रही है. इसके पहले भी विनिवेश के लक्ष्य से सरकार लगातार दूर ही रही है. लेकिन इस बार ज्यादा सक्रियता न दिखाने की एक वजह यह भी हो सकती है कि जीएसटी के जरिए सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व हासिल हो रहा है.
नीति आयोग का सुझाव
सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) और नीति आयोग ने non-strategic सेक्टर्स के 176 ऐसे सार्वजनिक उद्यमों की पहचान की थी और कहा था कि इनमें से करीब 60 फीसद को बंद कर दिया जाए और बाकी का निजीकरण कर दिया जाए. इन दोनों संस्थाओं ने सुझाव दिया है कि लोक कल्याण के लिए जरूरी सिर्फ आठ कंपनियां ही सरकारी क्षेत्र में रहें. उर्वरक मंत्रालय के तहत 9 सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण किया जाना है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी इसका विरोध कर रहे हैं.
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