बैंकों के लिए पूंजी जुटाने की लागत चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सालाना आधार पर करीब एक फीसदी बढ़ चुकी है. बैंकों की लागत बढ़ने की प्रमुख वजह फिक्स्ड डिपोजिट (एफडी) दरों में हो रही वृद्धि है. ग्राहक ऊंचे ब्याज दर वाली फिक्स्ड डिपोजिट स्कीम में ज्यादा पैसा जमा कर रहे हैं. बाजार से धन जुटाने की लागत भी बैंकों के लिए बढ़ी है. पूंजी जुटाने की लागत बढ़ने से बैंकों को जमा पर अधिक ऊंची दर से ब्याज का भुगतान देना पड़ रहा है. वहीं दूसरी और बैंक बाजार से ज्यादा ब्याज पर पैसा उठा रहे हैं. इन दोनों वजह से बैंकों के मार्जिन पर दबाव बढ़ गया है.
क्यों बढ़ी ब्याज दरें भारतीय रिजर्व बैंक ने मार्च 2022 से लेकर अबतक रेपो दर में 250 बेसिस प्वॉइंट की बढ़ोतरी की है. रेपो दर 4 फीसदी से बढ़कर अब 6.5 फीसदी हो गई है. रेपो दर बढ़ने से बैंकों ने कर्ज और जमा पर भी ब्याज दरों को बढ़ाया है. फिक्स्ड डिपोजिट पर ब्याज दरें अधिक आकर्षक बनने से ग्राहक ज्यादा रिटर्न के चक्कर में बचत खाते के बजाय फिक्स्ड डिपोजिट में ज्यादा पैसा जमा कर रहे हैं.
ज्यादा जमा से बैंकों को हो रहा नुकसान फिक्स्ड डिपोजिट में अधिक पैसा जमा होने से बैंकों के लिए पूंजी की लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. सार्वजनिक, निजी और स्माल फाइनेंस बैंकों के कॉस्ट ऑफ फंड चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सालाना आधार पर 90 से 130 बेसिस प्वॉइंट बढ़ी है. तिमाही आधार पर कॉस्ट ऑफ फंड में यह वृद्धि 20 से 40 बेसिस प्वॉइंट है.
1 फीसदी बढ़ी बैंकों की लागत आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक आउटस्टेंडिंग टर्म डिपोजिट पर वेटेड एवरेज डोमेस्टिक टर्म डिपोजिट रेट (WADTDR) जून 2023 में बढ़कर 6.47 फीसद हो गया है, जो एक साल पहले समान अवधि में 5.13 फीसद था. फ्रेश टर्म डिपोजिट पर WADTDR जून 2023 में 6.34 फीसद रही है.
बचत नहीं निवेश पर जोर रिटेल ग्राहक अपनी बचत को ऊंची ब्याज दर वाली फिक्स्ड डिपोजिट स्कीम में शिफ्ट कर रहे हैं. बैंकों के पहली तिमाही के नतीजों से पता चलता है कि ग्राहक ऊंची ब्याज दर का फायदा उठाने के लिए फिक्स्ट डिपोजिट और बल्क डिपोजिट को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
बाजार से पूंजी जुटाना भी हुआ महंगा बैंकों के लिए बाजार से उधारी लेने की दर भी बढ़ गई है. बैंक के सर्टिफिकेट ऑफ डिपोजिट (सीडी) की दर पहली तिमाही में बढ़कर विभिन्न अवधि के लिए 6.80 से 8.70 फीसदी हो गई है. एक साल पहले समान तिमाही में यह दर 3.95 से लेक 6.80 फीसदी थी.
स्मॉल फाइनेंस बैंक की लागत में नहीं हुई ज्यादा वृद्धि हालांकि स्मॉल फाइनेंस बैंक की कॉस्ट ऑफ फंड्स में बहुत ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है. स्मॉल फाइनेंस बैंक ग्राहकों से पूंजी जुटाने के लिए कोविड काल के समय से ही आकर्षक ब्याज दरें पेश कर रहे हैं. इस वजह से छोटे बैंक की कॉस्ट ऑफ फंड्स में सालाना आधार पर 25 से 30 बेसिस प्वॉइंट्स की बढ़ोतरी ही दर्ज की गई है.
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