पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को स्क्रैप कराने पर अब ज्यादा फायदा हो सकता है. दरअसल वाहन मालिकों को स्क्रैपिंग के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए सरकार मौजूदा स्क्रैपेज नीति की समीक्षा कर रही है. इसमें बदलाव किया जा सकता है. सड़क परिवहन मंत्रालय स्क्रैपिंग को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त लाभों को लेकर चर्चा कर रहा है.
सूत्रों के मुताबिक मौजूदा स्क्रैपेज नीति के नाकामयाब होने से सरकार ने इसमें बदलाव का मन बनाया है. भारत सरकार अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, कनाडा और जर्मनी जैसे देश की तर्ज पर स्क्रैपिंग को बढ़ावा देने की पेशकश कर सकती है. बता दें देश में 2021 में जारी स्क्रैपेज नीति में निर्माताओं और राज्य सरकारों की ओर से दिए जाने वाले प्रोत्साहन का प्रस्ताव था. सरकार ने अनुमान लगाया था कि स्क्रैपिंग से लगभग 10,000 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित होगा और 35,000 नौकरियां पैदा होंगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. मालिकों ने पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में बेचना जारी रखा.
मौजूदा नीति की खास बातें
2021 की स्क्रैपेज नीति के तहत, पुराने वाहन का स्क्रैप मूल्य नए वाहन की एक्स-शोरूम कीमत का 4-6% होता है. स्क्रैपिंग के बाद अधिकृत केंद्र वाहन मालिकों को एक स्क्रैपिंग प्रमाणपत्र प्रदान करता है. सड़क मंत्रालय ने कहा था कि वह सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर वाणिज्यिक वाहनों के लिए स्वचालित फिटनेस केंद्र स्थापित करने को बढ़ावा देगा. हाल के वर्षों में कई वाहन निर्माताओं ने आपसी साझेदारी या अपनी समूह कंपनियों के जरिए वाहन स्क्रैपिंग में एंट्री ली थी, इनमें टाटा मोटर्स रिवायर, महिंद्रा सेरो और मारुति सुजुकी शामिल हैं.
स्क्रैपेज नीति के सफल न होने की वजह
पुराने वाहनों को हटाने के लिए सरकार की ओर से बनाई गई स्क्रैपेज नीति सफल नहीं हो पाई. उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया धीमी रही है, इनमें से अधिकांश केंद्रों पर उपयोग का स्तर 20% से नीचे बना हुआ है. जानकारों का कहना है कि सीमित वित्तीय लाभ की वजह से वाहन मालिक स्क्रैपिंग में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इसके अलावा नियमित वाहन फिटनेस परीक्षण की कमी भी भारत में कम स्क्रैपेज का एक कारण है.
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