वित्तीय संस्थानों को केवाईसी को लेकर काफी समय से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में सेंट्रलाइज्ड नो योर कस्टमर (सी-केवाईसी) डेटाबेस को इसके समाधान के तौर पर देखा जा रहा था. लेकिन इसे लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने चिंता जताई है. आरबीआई ने इसे बड़ा जोखिम बताया है. इसके तहत अब बैंकों और बड़े कर्ज लेने वाले ग्राहकों के सत्यापन के लिए वीडियो केवाईसी या फिजिकल केवाईसी करनी पड़ सकती है, जो कि महंगी है.
केवाईसी को लेकर आरबीआई ने कहा है, “ऐसे ग्राहक जो सी-केवाईसी और डिजिलॉकर के जरिए सत्यापित हुए हैं, उन्हें हाई रिस्क कस्टमर्स की कैटेगरी में शामिल किया जाएगा. इसके अलावा जो अकाउंट नॉन फेस टू फेस मोड में खोले गए हैं, उनकी तब तक मॉनिटरिंग की जाएगी जब तक कि कस्टमर की पहचान प्रत्यक्ष रूप से या वीडियो क्लिप के जरिए न हो जाए.
अपनी उपयोगिता और सुविधा के कारण सी-केवाईसी ने वित्तीय सेवा क्षेत्र में तेजी से लोकप्रियता हासिल की थी. सेंट्रल रजिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटाइजेशन एसेट रिकंस्ट्रक्शन एंड सिक्योरिटी इंटरेस्ट ऑफ इंडिया (Cersai) के रिकॉर्ड के अनुसार, डेटाबेस का उपयोग करने वाले लगभग 5,000 संस्थान हैं जिनमें लगभग 70 करोड़ KYC रिकॉर्ड हैं. इसलिए, भले ही कोई बैंक किसी ग्राहक को जोड़ने के लिए सी-केवाईसी का उपयोग करता है, लेकिन व्यक्ति को प्रमाणित करने के लिए वीडियो केवाईसी या फिजिकल केवाईसी की जरूरत होगी.
क्या है सी-केवाईसी?
अपने ग्राहक को जानने के लिए वित्तीय संस्थानों की ओर से केवाईसी कराई जाती है. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दस्तावेजों के जरिए किसी व्यक्ति की पहचान और उसके पते को प्रमाणित किया जाता है. हर वित्तीय संस्थान में इसकी अलग प्रक्रिया है. सी-केवाईसी या सेंट्रल केवाईसी भी इसी का प्रारूप है. हालांकि इसमें ग्राहक को विभिन्न संस्थानों के साथ केवाईसी प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत नहीं होती है. सी-केवाईसी स्टेटस को अपग्रेड करने के लिए इसका पैन से लिंक होना जरूरी है.
क्यों सुरक्षित नहीं C-KYC?
जानकारों के मुताबिक सी-केवाईसी में मौजूद दस्तावेज स्कैन किए हुए होते हैं, जो ज्यादातर साफ प्रिंट के नहीं होते हैं. वहीं सी-केवाईसी को खोलने के लिए पैन नंबर और ग्राहक के डेट ऑफ बर्थ की जरूरत होती है, लेकिन पैन नंबर और जन्मतिथि आसानी से पब्लिक डोमेन में मौजूद होते हैं. ऐसे में धोखाधड़ी का खतरा हो सकता है.