दालों की खेती को पिछड़ते देख देश के दलहन आयातकों ने दाल आयात बढ़ा दिया है. जून के दौरान देश में दलहन आयात में करीब 3 गुना बढ़ोतरी हुई है. जुन में कुल 1793 करोड़ रुपए के दलहन का आयात हुआ है, पिछले साल जून के दौरान 564 करोड़ रुपए के दलहन का आयात हुआ था. पिछले साल के मुकाबले ज्यादा मात्रा में दलहन आयात और आयात पर ज्यादा लागत की वजह से कीमत के आधार पर इंपोर्ट में 3 गुना बढ़ोतरी हुई है. जून तिमाही में हुए इंपोर्ट के आंकड़ों को देखें इस साल अप्रैल से जून के दौरान आयात 138 फीसद बढ़कर 4117 करोड़ रुपए का रहा है.
आम तौर पर दलहन के मामले में भारत लगभग आत्मनिर्भर है, देशभर में सालाना जितने दलहन की खपत होती है लगभग उतना उत्पादन हो जाता है, थोड़ी बहुत जरूरत आयात से पूरी होती है. लेकिन इस साल देश में खरीफ दलहन की खेती पिछड़ी हुई है जिस वजह से आयातित दाल पर निर्भरता बढ़ सकती है. इसी को ध्यान में रखते हुए आयातकों ने दलहन आयात बढ़ा दिया है. वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान देश में 25.29 लाख टन दलहन का आयात हुआ था जबकि 2021-22 के दौरान 27.71 लाख टन दालें इंपोर्ट हुई थी. इस साल जून तिमाही के दौरान देश में 1.46 लाख टन तुअर और करीब 1 लाख टन उड़द का आयात हुआ है.
दालों की खेती की बात करें 14 जुलाई तक देशभर में रकबा 13 फीसद पिछड़ा हुआ है और करीब 67 लाख हेक्टेयर में खरीफ दलहन की खेती हुई है. लेकिन खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा पैदा होने वाले दलहन तुअर की खेती 38 फीसद पीछे है. 14 जुलाई तक देशभर में सिर्फ 17 लाख हेक्टेयर में तुअर की खेती हो पाई है जबकि पिछले साल इस दौरान 27 लाख हेक्टेयर से ज्यादा में तुअर की खेती हो चुकी थी. इस साल जिन दलहन का इंपोर्ट बढ़ा है उनमें तुअर ही सबसे ज्यादा है. तुअर के अलावा उड़द का आयात भी बढ़ा है और इसकी खेती भी पिछले साल के मुकाबले पिछड़ी हुई है.
दलहन आयात पर खर्च बढ़ने की एक और वजह विदेशी बाजार में बढ़ी हुई कीमतें भी हैं. दुनियाभर में भारत दलहन का सबसे बड़ा इंपोर्टर और कंज्यूमर है और इस साल भारतीय मांग को देखते हुए उन देशों में भी दलहन का भाव बढ़ गया है जहां से भारत आयात करता है. अप्रैल के दौरान म्यांमार में उड़द का भाव 900 डॉलर प्रति टन था जो जून के दौरान बढ़कर 1030 डॉलर तक पहुंच गया था. इसी तरह अप्रैल के दौरान बर्मा में तुअर का भाव 1010 टन हुआ करता था जो जून के दौरान 1365 डॉलर हो गया था.
यानी विदेशों से दालों का यह आयात बढ़ी हुई कीमत पर हो रहा है और इंपोर्ट पर ज्यादा लागत से घरेलू स्तर पर दालों की महंगाई से ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद कम है. इंपोर्टेड दाल से घरेलू बाजार में कीमतें तभी कम होंगी जब विदेशों से दाल आयात की लागत कम होगी.
Published - July 20, 2023, 11:57 IST
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