सरकार और LIC, दोनों को IDBI Bank में अपनी हिस्सेदारी को रणनीतिक रूप से बेचने में अभी और वक्त लग सकता है. ये वक्त प्रक्रिया में हो रही देरी की वजह से बढ़ सकता है. रणनीतिक बिक्री की प्रक्रिया में लग रहे अधिक समय की वजह से संभावित बोलियों की समयसीमा चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक बढ़ सकती है. संभावित बोलीदाताओं से रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) हासिल करने के बाद, वित्तीय बोलियां विनिवेश प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण कदम होता है.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) शॉर्टलिस्टिड संभावित बोलीदाताओं का फिट एंड प्रोपर असेसमेंट कर रहा है. RBI ने अभी तक किसी भी बोलीदाता को अपनी मंजूरी नहीं दी है. RBI से मंजूरी मिलने में हो रही देरी की वजह से वित्तीय बोली मंगाने की अवधि आगे खिसकने की संभावना है.
दिसंबर तक खिसक सकती है तारीख इस मामले से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि IDBI बैंक के विनिवेश के लिए वित्तीय बोलियां सितंबर तक मंगाने की योजना थी. लेकिन प्रक्रिया में हो रही देरी की वजह से इसमें अब और ज्यादा वक्त लग सकता है. दिसंबर अंत तक वित्तीय बोलियां आमंत्रित की जा सकती हैं. RBI बहुत सावधानी से रुचि पत्रों का आकलन कर रहा है. उसकी चिंता को समझा जा सकता है क्योंकि ये एक बैंक को बेचने से जुड़ा मामल है. बताया जा रहा है कि आरबीआई बैंक की पूंजी पर्याप्तता, अधिग्रहण के बाद की स्थिति, संभावित बोली लगाने वालों के रिकॉर्ड को अच्छे से जांच परख कर उनकी विश्वसनीयता, बैंक में अतिरिक्त पूंजी लगाने आदि की स्थिति पर विचार कर रहा है.
सरकार के लिए क्यों जरूरी है IDBI की बिक्री केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 51,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने में IDBI की अहम भूमिका होगी. IDBI बैंक के रणनीतिक विनिवेश से सरकार को 15,000-16,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है. दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि वित्तीय बोली आमंत्रित करने और शेयर हस्तांतरण से लेकर ओपन ऑफर की प्रक्रिया पूरी होने में 2 से 3 महीने का वक्त लगता है. गौरतलब है कि सरकार को आईडीबीआई बैंक में 60.72 फीसद हिस्सेदारी खरीदने के लिए 7 जनवरी को घरेलू और विदेशी निवेशकों से कई ईओआई मिले थे. इस सौदे में सरकार की 30.48 फीसद और मौजूदा प्रवर्तक एलआईसी की 30.24 फीसद हिस्सेदारी की बिक्री होगी.
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