कोयले की ढुलाई का तरीका बदलने और इसका आयात महंगा पड़ने की वजह से गर्मी में बिजली की कीमतें बढ़ने के आसार हैं. वहीं कोयले की कीमतें पिछले साल से इस साल भले ही कम हैं लेकिन ये पिछले कुछ सालों के मुकाबले अब भी ज्यादा हैं. केयर एज रेटिंग्स के डायरेक्टर सुधीर कुमार कहते हैं कि आयात किए गए कोयले का सम्मिश्रण बिजली बनाने की परिवर्तनीय लागत को बढ़ा देगा. तीन साल पहले आयात किए गए कोयले का भाव 60 डॉलर प्रति टन था. अब इसकी क़ीमत 140 से 150 डॉलर प्रति टन पहुंच गई है. पिछले साल तो इसने 400 डॉलर प्रति टन के आंकड़े को भी छू लिया था.
इसके अलावा रेल नेटवर्क पर दबाव कम करने के लिए प्रस्तावित नए रेल-जहाज-रेल रूट (Rail-Ship-Rail Route) के ज़रिए कोयले का ट्रांसपोर्ट महंगा पड़ेगा और ज्यादा समय भी लगेगा. इस रूट के ज़रिए उत्तर भारतीय राज्यों में कोयला पहुंचाने में कम से कम 15 दिन लगेंगे जबकि यही पहले रेल लाइन के ज़रिए ढुलाई में 4 से 5 दिन लगते थे. मार्च में एक इंटरव्यू में केंद्रीय कोयला सचिव अमृत लाल मीणा ने कहा था कि रेल से कोयले को सप्लाई करने का खर्च 4700 रुपए प्रति टन आया जबकि रेल जहाज रेल रूट से इसकी लागत 7400 रुपए प्रति टन होगी.हालांकि ये फिर भी आयात किए गए कोयले पर प्रति टन आने वाले 10000 से 12000 रुपए प्रति टन से काफ़ी कम है. वहीं सुधीर कुमार का कहना है कि घरेलू कोयला अगर पुराने तरीके से ही सप्लाई किया जाएगा तो इसकी क़ीमत 5000 रुपए प्रति टन आएगी लेकिन रेल जहाज रेल रूट के ज़रिए इसकी ढुलाई होगी तो इसकी क़ीमत 7000 रुपए प्रति टन पड़ेगी.
बता दें NTPC ओडिशा के पारादीप से अपने दो पावर प्लांट्स हरियाणा के झज्जर और उत्तर प्रदेश के दादरी में RSR रूट के ज़रिए कोयले की ढुलाई शुरू कर चुकी है. इसके कर्नाटक के कुडगी प्लांट और उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार प्लांट में भी जल्द ही इसी तरीके कोयला पहुंचने लगेगा. राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र ने कोयले को RSR रूट के ज़रिए सप्लाई करने के लिए टेंडर शुरू कर दिए हैं. ज़ाहिर है आने वाले समय में कोयले की क़ीमत बढ़ने से उपभोक्ताओं के बिजली बिल पर भी इसका बोझ पड़ता दिखाई देगा.
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