महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार (मनरेगा) योजना में अगस्त 2023 में करीब 1.91 करोड़ घरों ने रोजगार की मांग की है. दरअसल, अगस्त में मॉनसून से होने वाली बारिश की कमी से गांवों में लोगों का रोजगार छीन गया. यही वजह है कि मनरेगा योजना एक तहत रोजगार की मांग बढ़ गई. पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इस साल अगस्त में काम की मांग में 20 फीसद की बढ़ोतरी रही.
कोरोना महामारी के समय भी मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बढ़ गई थी. हालांकि कोविड के वर्ष 2020-21 और 2021-22 को छोड़कर 2014-15 के बाद से सबसे अधिक मांग इस वर्ष यानी 2023 के दौरान रही. इस योजना के तहत ये आरोप भी लगे हैं कि इसमें आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के कारण श्रमिकों को भुगतान प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे में, लाखों श्रमिक कार्यस्थलों पर आने के लिए तैयार नहीं हैं. इसके बावजूद खराब मौसम और फसल की बर्बादी के कारण मनरेगा में रोजगार की मांग निरंतर बढ़ती रही.
पश्चिम बंगाल में यह योजना लगभग बंद हो गई है. आंकड़ों के अनुसार 31 अगस्त, 2023 तक (एबीपीएस प्रणाली में पंजीकृत कराने की अंतिम तिथि) मनरेगा के करीब 14.3 करोड़ श्रमिकों में से करीब 17 फीसद एबीपीएस में शामिल नहीं हुए हैं. सरकार का कहना है कि एबीपीएस के तहत मनरेगा के भुगतान की अंतिम तिथि को बढ़ाकर दिसंबर 2023 या अगले आदेश तक कर दिया गया है.
सरकार ने यह भी कहा है कि अब काम करने आने वाले लाभार्थियों को आधार कार्ड देना होगा. हालांकि नियम के अनुसार, आधार कार्ड नहीं होने की स्थिति में उन्हें कार्य मुहैया कराने ने मना नहीं किया जा सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि मॉनसून के कमजोर रहने के कारण अगस्त में मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में इजाफा हुआ है. इसके अलावा, गांव में रोजगार कम भी होते जा रहे हैं, जिसके चलते मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बढ़ गई है.
साधारण तौर पर जुलाई के साथ अगस्त में भी मनरेगा में काम की मांग कम होती है, क्योंकि इस अवधि में खरीफ की फसल की बोआई जोरदार ढंग से शुरू होने के कारण रोजगार की मांग प्रभवित होती है और इस दौरान बोआई में ग्रामीण अस्थायी श्रमिकों काम मिल जाता है. उधर मौसम विभाग का कहना है कि अगस्त महीने में मॉनसून 1901 के बाद सबसे कमजोर 2023 में रहा और इस साल इस महीने बारिश केवल 161.7 मिलीमीटर हुई.