सरकार उपभोक्ता मामलों में पैनल में शामिल मध्यस्थों को 3,000 रुपये से 5,000 रुपए के बीच मेहनताना देगी. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि इससे ज्यादा से ज्यादा शिकायतों का निपटान मध्यस्थता प्रकोष्ठ के जरिए होने की उम्मीद है. आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार मंत्रालय ने विभिन्न पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय किया है. इस संदर्भ में पूर्वोत्तर और उत्तरी राज्यों में कार्यशालाएं भी आयोजित की गयी थीं.
यह पाया गया है कि मध्यस्थता के माध्यम से बड़ी संख्या में मामलों का समाधान नहीं हो पाता है क्योंकि विवादों में शामिल पक्ष मध्यस्थ को पैसा नहीं देना चाहते. विज्ञप्ति में कहा गया है कि सुझावों के आधार पर मंत्रालय ने उपभोक्ता कल्याण कोष से सूचीबद्ध मध्यस्थ को उनका मेहनताना देने का निर्णय किया है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने बयान में कहा कि विवाद की राशि या आयोग के अध्यक्ष के जरिये निर्धारित मध्यस्थ की राशि अथवा निर्धारित शुल्क, इसमें जो भी कम हो, मध्यस्थ को दिया जाएगा.
जिला आयोग में सफल मध्यस्थता के लिये मध्यस्थ को लगभग 3,000 रुपये दिए जाएंगे. वहीं राज्य आयोग में 5,000 रुपए का भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा जिला आयोग में भले ही संबंधित मामलों की संख्या कुछ भी हो, मध्यस्थता के लिए करीब 600 रुपए प्रति मामले और अधिकतम 1,800 रुपए का भुगतान किया जाएगा.
राज्य आयोग में मध्यस्थता के लिए प्रति मामला लगभग 1,000 रुपए दिए जाएंगे. इसमें अधिकतम राशि 3,000 रुपए है, भले ही संबंधित मामलों की संख्या कितनी भी क्यों न हो. अगर मध्यस्थता सफल नहीं हुई, तो जिला और राज्य आयोग में मध्यस्थ को प्रति मामला क्रमशः लगभग 500 और 1,000 रुपए का भुगतान किया जाएगा. राशि का भुगतान उपभोक्ता कल्याण कोष में अर्जित ब्याज से किया जाएगा. इस कोष का गठन राज्य और उपभोक्ता मामलों के विभाग ने संयुक्त रूप से किया है. मंत्रालय ने इन बदलावों को प्रभाव में लाने के लिए उपभोक्ता कल्याण निधि दिशानिर्देशों में संशोधन किया है और उपभोक्ता विवाद में अंतिम निर्णय के बाद शिकायतकर्ता या शिकायतकर्ताओं के वर्ग द्वारा किये गये कानूनी खर्चों की भरपाई के लिये धारा चार को शामिल किया है.