सरकार के द्वारा बासमती चावल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के मकसद से उठाए गए कदमों की वजह से भारतीय चावल निर्यातकों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है. दरअसल, बासमती चावल के निर्यात के लिए न्यूनतम मूल्य तय करने के फैसले की वजह से भारत ग्लोबल मार्केट में अपनी हिस्सेदारी को खोना शुरू कर चुका है. न्यूनतम निर्यात मूल्य तय होने की वजह से पाकिस्तान के मुकाबले भारत का बासमती चावल वैश्विक खरीदारों को महंगा पड़ रहा है. बता दें कि अगस्त के दौरान ग्लोबल मार्केट में भारत के पूसा बासमती का औसत भाव 1,550 डॉलर प्रति टन था, जबकि पाकिस्तान के बासमती का औसत भाव 1,109 डॉलर प्रति टन था. उद्योग से जुड़े अधिकारियों और बासमती निर्यातकों का कहना है कि सरकार ने घरेलू बाजार में सप्लाई बढ़ाने और कीमतों पर लगाम लगाने के मकसद से बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य 1,200 डॉलर प्रति टन तय कर दिया है, जिससे यह समस्या उत्पन्न हो गई है.
पहले के भाव पर निर्यात के लिए डाल रहे दबाव
अधिकारियों और बासमती निर्यातकों के मुताबिक हाल ही में तुर्किये में हुए इस्तांबुल खाद्य मेले में एक भी भारतीय कंपनी को सरकार द्वारा 1,200 डॉलर प्रति टन की न्यूनतम निर्यात मूल्य की सीमा तय किए जाने की वजह से बासमती की किसी भी वैरायटी के लिए ऑर्डर नहीं मिल पाया था. वैश्विक खरीदार अब उन सभी ऑर्डर के भुगतान में देरी कर रहे हैं जिसे भारत सरकार के निर्देश के पहले भेज दिए गए थे. वैश्विक खरीदारों की ओर से घरेलू निर्यातकों को पहले तय की गई कीमत पर बासमती चावल को भेजने के लिए दबाव डाला जा रहा है.
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट और बासमती निर्यातक विजय सेतिया के मुताबिक 6 से 9 सितंबर के बीच इस्तांबुल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य उत्पाद और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी में भारत की नए बासमती चावल के लिए कोई खरीदार नहीं था. बता दें कि भारत में बासमती चावल की पांच किस्म पूसा, पूसा 1401, पूसा 1121, पूसा 1509 और पूसा 1718 का उत्पादन होता है. पिछले साल बासमती चावल की औसत एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड) प्राइस करीब 1,050 डॉलर प्रति टन थी. ऑर्डर में कमी आने की वजह से निर्यातक किसानों से अच्छी मात्रा में चावल नहीं खरीद रहे हैं. साथ ही वे अपने स्टॉक को भी नहीं बढ़ा रहे हैं.