अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) भारत में काम के घंटो और काम से जुड़ी समीक्षा करने में जुटा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संगठन इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है जो जुलाई-अगस्त तक पेश की जाएगी. इस रिपोर्ट में ओवरटाइम और अंडरटाइम काम के घंटों का भी आकलन किया जाएगा. साथ ही संगठन वर्क-लाइफ बैलेंस पर लंबे समय तक काम करने के प्रभाव का भी पता लगाने की कोशिश करेगा. इस रिपोर्ट पर ऐसे समय में किया जा रहा है जब भारत में कई राज्य काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने का विकल्प चुन रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक ILO दूसरे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की कामकाजी परिस्थितियों और काम के घंटों के विश्लेषण के साथ भारत से मिले आंकड़ों की तुलना करेगा. साथ ही संगठन देश में काम के माहौल को बेहतर बनाने की सिफारिशें भी देगा. दरअसल श्रम से जुड़ी नीतियां बनाते समय काम के घंटे और वर्क-लाइफ बैलेंस एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पॉलिसी बनाते समय इसकी सबसे ज्यादा उपेक्षा की जाती है.
ILO पूरे हफ्ते में 48 कामकाजी घंटों के हिसाब से छह दिनों के लिए हर दिन आठ घंटे काम की बात कहता है. हालांकि काम के घंटों पर ILO की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, कामगारों की वैश्विक आबादी का एक तिहाई हिस्सा नियमित रूप से एक हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम करता है, जबकि कुल श्रमिकों की आबादी का पांचवां हिस्सा प्रति हफ्ते 35 घंटे से कम काम करता है. संगठन की वैश्विक रिपोर्ट में लंबे समय तक काम करने की कमियों पर जोर दिया गया है. रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि ज्यादा लंबे समय तक काम करने से लोगों का वर्क-लाइफ़ बैलेंस तो बिगड़ता ही है इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है. नतीजन व्यक्ति की काम करने की दक्षता कम हो जाती है.
यह संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है. यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियां बनाने और सभी महिला-पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने के लिए 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है. 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई थी. इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है. 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था.