हाउसिंग सोसायटी को गणपति या दुर्गापूजा जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए चंदा वसूल करने का अधिकार मिल गया है. हाउसिंग सोसायटी की ओर से लिए जाने वाले अनिवार्य शुल्क के प्रस्ताव को 17 साल पहले अदालत में चुनौती दी गई थी. जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है. ऐसे में देश की हाउसिंग सोसाइटियों को सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियों के लिए शुल्क इकट्ठा करने की अनुमति है.
न्यायमूर्ति माधव जामदार ने उप-कानून 5 (डी) का हवाला देते हुए हाउसिंग सोसाइटियों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के महत्व पर जोर दिया. वहीं जस्टिस जामदार ने कहा कि इंसान को समाज में रहना होता है, इसलिए हाउसिंग सोसाइटियों के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक या मनोरंजक गतिविधियों को व्यवस्थित और संचालित करना जरूरी है. अदालत ने यह साफ किया कि महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी अधिनियम के तहत हाउसिंग सोसायटी और अन्य सोसायटी के बीच अंतर है, जो सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए शुल्क एकत्र करने की अनुमति देता है.
बता दें याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि केवल समाज के मुनाफे को सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक सामान्य कल्याण कोष में आवंटित किया जाना चाहिए, जैसा कि उप-कानून 148 में कहा गया है. इसके अलावा यह भी दलील दी गई कि उपनियम 65 के तहत सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए लेवी का प्रावधान नहीं करता है. ऐसे में अदालत का कहना है कि उप-कानून समाजों को स्थापित करने से प्रतिबंधित नहीं करता है. एक सांस्कृतिक कोष बनाना और योगदान एकत्र करना, जो समाज के मुनाफे के अलावा अन्य स्रोतों से भी आ सकता है. इस दौरान सोसायटी नियमों के तहत चीजें करें.