कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सरकार जल्द ही फर्टिलाइजर और रिफाइनिंग उद्योग जैसे क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन (GH) की उपयोग अनिवार्य कर सकती है. उद्योग विश्लेषकों को उम्मीद है कि इससे ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम के तेजी से विकास में मदद मिलेगी. साथ ही देश में शुरुआती खपत को बढ़ावा मिल सकता है.
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांज़िशन के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप (SIGHT) में दिए गए राजकोषीय प्रोत्साहनों के अलावा, उन क्षेत्रों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन अनिवार्य किया जाना चाहिए, जो पहले से ही हाइड्रोजन का उत्पादन और उपभोग कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में फर्टिलाइजर और रिफाइनिंग क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन अनिवार्य करने से अगले कुछ वर्षों में अन्य उद्योगों में भी इसमें तेजी आ सकती है.
ग्रीन हाइड्रोजन में बदलाव से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी. इस पर बढ़ती निर्भरता से उर्वरक और रिफाइनिंग दोनों क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस के उपयोग पर अंकुश लगेगा. लेकिन इसके अलावा रिफाइनरों को कोई और फायदा नहीं होगा, क्योंकि हरित हाइड्रोजन अब ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में अधिक महंगा है.
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के मसौदे में वर्तमान में बड़े उपयोगकर्ताओं और तेल शोधन और उर्वरक जैसे क्षेत्रों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल पर विचार किया गया था. एनजीएचएम का कहना है कि थोक मांग पैदा करने और हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ऊर्जा फीडस्टॉक के रूप में उपभोक्ताओं की ओर से हरित हाइड्रोजन की खपत का न्यूनतम हिस्सा निर्दिष्ट करेगी. एनजीएचएम ने स्टील, ऊर्जा भंडारण और शिपिंग जैसे अन्य क्षेत्रों के लिए जीवाश्म ईंधन को बदलने के लिए हरित हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए पायलट परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है.