सरकार पुराने वाहनों को खत्म करने के बजाय उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने पर विचार कर रही है. इसके लिए प्रोत्साहन यानी इंसेंटिव भी दिया जा सकता है. सरकार पुरानी गाडि़यों को रेट्रो फिटिंग के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करने पर जोर दे रही है. इस बारे में प्रबंधन परामर्श फर्म प्राइमस पार्टनर्स और ईटीबी (यूरोपीय व्यापार और प्रौद्योगिकी केंद्र) की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, पुराने वाहनों को रेट्रोफिटिंग से ईवी में बदलने पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि उद्योग सहयोग और सार्वजनिक भागीदारी से इसे हल किया जा सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक रेट्रोफिटिंग मौजूदा वाहनों को आधुनिक बनाने का एक बेहतर जरिया है. इससे कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी. रेट्रोफिटिंग एक अस्थायी समाधान से कहीं अधिक है. डेटा के अनुसार 2023 तक, वैश्विक स्तर पर रेट्रोफिट वाहन बाजार 65.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. इसमें 7.40 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ 2032 तक इसके 125.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. रेट्रोफिटिंग आम तौर पर नए ईवी खरीदने की तुलना में सभी प्रकार के वाहनों में तुरंत निवेश पर रिटर्न मिलेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यम-ड्यूटी ट्रकों के मामले में रेट्रोफिटिंग के लिए ब्रेक-ईवन प्वाइंट (जब किसी एसेट का बाजार मूल्य उसकी मूल लागत के बराबर हो) लगभग पांच वर्षों में हासिल किया जा सकता है, जबकि नए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लगभग 8 वर्षों का समय लगता है. वहीं बसों के लिए, रेट्रोफिटेड इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ब्रेक-ईवन लगभग चार वर्षों में पहुंच जाता है, जो कि नए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक आठ वर्षों की तुलना में काफी तेज है.
अभी तक स्क्रैपेज नीति का होता था पालन
पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को हटाने के लिए अभी तक भारत की वाहन स्क्रैपेज नीति का पालन किया जाता है. जिसमें 15 वर्ष से अधिक पुराने वाणिज्यिक वाहन और 20 वर्ष से अधिक पुराने यात्री वाहनों को स्क्रैप किया जाता है. यह नीति केवल वाहनों की उम्र ही नहीं बल्कि उनकी फिटनेस और उत्सर्जन स्तर सहित विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है. स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत पुराने वाहनों को हटाकर उनके स्थान पर नए और अधिक पर्यावरण-अनुकूल वाहनों को लाया जाता है. मगर अब सरकार पुराने वाहनों को खत्म करने के बजाय इसे ईवी में बदलने के लिए प्रोत्साहन या समर्थन पहल प्रदान कर सकती है. ऐसा करने से मौजूदा वाहनों का जीवनकाल बढ़ जाएगा.
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