कस्टम विभाग की ओर से चावल निर्यातकों को नोटिस भेजा गया है. कस्टम विभाग ने नोटिस के तहत निर्यातकों से बीते 18 महीने के दौरान एक्सपोर्ट हुए चावल की ट्रांजेक्शन वैल्यू पर टैक्स देने के लिए कहा है. दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत ने बासमती चावल के निर्यात पर न्यूनतम निर्यात मूल्य यानी MEP की शर्त लागू की हुई है. साथ ही घरेलू चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अगस्त 2023 में सरकार ने सेला चावल के निर्यात पर भी समान शुल्क लगा दिया था. गौरतलब है कि सितंबर 2022 से सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियों की शुरुआत की थी और शुरुआत टूटे हुए चावल (ब्रोकेन राइस) के निर्यात पर रोक से हुई थी.
बता दें कि निर्यातक सेला चावल के फ्री ऑन बोर्ड (FOB) प्राइस के आधार पर 20 फीसद निर्यात शुल्क का भुगतान कर रहे थे, लेकिन सीमा शुल्क विभाग ने अब निर्यातकों से ट्रांजेक्शन वैल्यू पर टैक्स देने के लिए कहा है. चावल निर्यातकों का कहना है कि निर्यातकों के पास करीब 2 साल के टैक्स का भुगतान करने के लिए वित्तीय ताकत नहीं और ऐसा करने से पहले वे अपने कारोबार को बंद करने का फैसला कर सकते हैं. निर्यातकों का कहना है कि सरकार अब
टैक्स के तौर पर अतिरिक्त शुल्क की मांग कर रही है, जिसे किसी भी विदेशी खरीदार की तरफ से मिलने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में हम सरकार को अतिरिक्त शुल्क कैसे दे सकते हैं?.
चावल कारोबारियों का कहना है कि सरकार की नई गणना के अनुसार निर्यातकों को पिछले बीते दो साल में निर्यात किए गए चावल पर करीब 15 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का अतिरिक्त शुल्क देना होगा. उनका कहना है कि उद्योग जगत का अनुमान है कि इस अतिरिक्त शुल्क की कुल लागत करीब 15 अरब रुपए होगी. गौरतलब है कि सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के शिपमेंट पर 20 जुलाई 2023 से प्रतिबंध लगा रखा है.
सरकार के द्वारा बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य यानी MEP को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया गया है. राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने इस मुद्दे को लेकर सरकार से संपर्क करने की योजना बनाई है. एसोसिएशन का मानना है कि सरकार के द्वारा मौजूदा की शुल्क की मांग अव्यावहारिक है और इसी तरह के भ्रम से बचने के लिए भविष्य के निर्यात पर एक समान शुल्क का प्रस्ताव भी दिया जाना है.