राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLT) ने गुरुवार को कहा कि दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी के पूर्व प्रमोटरों और निदेशकों को तब तक बोलियां जमा करने से नहीं रोका जाएगा जब तक कि वे दिवाला कानून की धारा 29ए की धारा के तहत अयोग्य न हों.
अपीलीय न्यायाधिकरण ने इस संबंध में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण की मुंबई पीठ के एक आदेश को रद्द कर दिया. उसने कहा कि केवल यह तथ्य कि कोई व्यक्ति कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) से गुजर रही कंपनी का प्रमोटर और निदेशक था, उस व्यक्ति को समाधान योजना जमा करने के लिए अयोग्य नहीं बनाता है.
NCLT ने कहा था कि दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की धारा 29ए ऐसे व्यक्तियों को समाधान योजना जमा करने से रोकती है क्योंकि इसका पूरे CIRP पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
न्यायाधिकरण ने ब्लू फ्रॉग मीडिया के लिए महेश मथाई की समाधान योजना को खारिज करते हुए यह बात कही थी. मथाई कंपनी में निदेशक थे.
मथाई के प्रस्ताव को कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) ने 91.86 प्रतिशत मतों के साथ मंजूरी दे दी. उसके बाद समाधान पेशेवर ने NCLT के समक्ष अनुमोदन के लिए याचिका दायर की. लेकिन NCLT ने उसे खारिज कर दिया. इसे समाधान पेशेवर ने अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी थी.
अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘धारा 29ए प्रमोटरों और निदेशकों को समाधान योजना जमा करने को लेकर अयोग्य नहीं बनाती है. जब तक कि वे IBC के उपबंध (ए) से (जी) के तहत अयोग्य न हों, वे समाधान योजना जमा करने को लेकर पात्र हैं.’’
अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि मथाई ने समाधान योजना जमा करने से पहले ही कंपनी से इस्तीफा दे दिया था.
IBC की धारा 29ए ऐसे व्यक्तियों को परिभाषित करती है, जो समाधान आवेदन के लिए पात्र नहीं है.
ऐसे व्यक्ति जो जानबूझकर चूककर्ता हैं, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के प्रमोटर हैं, किसी अपराध को लेकर दो साल के कारावास की सजा पा चुके हैं या सेबी की तरफ से उनपर पाबंदी लगायी गयी है, एक कॉरपोरेट कर्जदार के संबंध में कर्जदाताओं के पक्ष में गारंटी दी है – धारा 29ए के तहत उन पर पाबंदी है.
Published - January 12, 2024, 12:15 IST
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