म्यूचुअल फंड्स में निवेश की सुविधा देने वाले पेटीएम मनी, ग्रो, ईटी मनी, ज़ेरोधा कॉइन या अन्य जैसे एग्जिक्यूशन ओनली प्लेटफॉर्म्स यानी EOPs के लिए कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं. सेबी ने कहा है कि उन्हें रेगुलेटर के साथ पंजीकृत होना होगा और सेबी ने ऐसे सभी प्लेटफॉर्म्स को म्यूचुअल फंड स्कीम्स के रेगुलर प्लान बेचने से भी रोक दिया है. ये प्लेटफॉर्म अब सिर्फ म्यूचुअल फंड के डायरेक्ट प्लान ही बेच पाएंगे.
सेबी ने EOPs को दो श्रेणी में बांटा है. पहली श्रेणी वाले ईओपी को AMFI (एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया) के साथ रजिस्टर्ड होना होगा. इन संस्थाओं को AMC के साथ समझौते करने होंगे और ये AMC से सीधे शुल्क वसूलेंगे. दूसरी श्रेणी में ईओपी सेबी के साथ स्टॉक ब्रोकर के रूप में रजिस्टर होंगे और निवेशकों से शुल्क लेंगे. हालांकि कितना शुल्क लिया जाना है ये तय होना बाक़ी है. हालांकि जो भी संस्थाएं या कंपनियां म्यूचुअल फंड्स के डायरेक्ट प्लान में ट्रांजैक्शन की सुविधा मुहैया करा रही है हैं उन्हें 1 सितंबर 2023 तक अपना रजिस्ट्रेशन पूरा कराना होगा.
क्या इससे आपको फायदा होगा?
म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर शिफाली सत्संगी कहती हैं, “सेबी के सर्कुलर के हिसाब से प्लेटफॉर्म को ईओपी1 और ईओपी2 के बीच चुनने की अनुमति देने से निवेशकों के लिए डायरेक्ट प्लान महंगे हो जाएंगे क्योंकि डायरेक्ट प्लान प्लेटफॉर्म AMCs और निवेशकों से ट्रांज़ेक्शन शुल्क लेंगे. इसकी वजह से डायरेक्ट प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए निवेश करने से निवेशक कतराएंगे.’ उन्होंने कहा इसका असर ये भी हो सकता है कि जो ब्रोकर अभी केवल रेगुलर प्लान पर कमाई करते हैं वे डायरेक्ट योजनाओं से भी कमाई कर सकते हैं.
सत्संगी कहती हैं कि चूंकि EOP रेटिंग और रैंकिंग के आधार पर उत्पादों को लिस्ट नहीं कर सकते हैं और न ही किसी योजना के नाम या ब्रांड का विज्ञापन कर सकते हैं. फिर चाहे वह मुख्य हो या संबद्ध. इसकी वजह से निवेशकों के लिए निवेश का निर्णय लेना कठिन और थकाऊ हो सकता है.
बता दें अभी तक भारत में लगभग 77 फ़ीसदी म्यूचुअल फंड निवेश वितरकों के माध्यम से आता है. सेबी ने कहा कि पिछले कुछ सालों से म्यूचुअल फंड की डायरेक्ट प्लान स्कीम में निवेश करने के लिए लोग आकर्षित हो रहे हैं. अभी म्यूचुअल फंड उद्याेग का आकार 43.20 लाख करोड़ रुपए का है जिस में डायरेक्ट प्लान का बहुत ही छोटा हिस्सा है.
डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान में अंतर?
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड सीधे कंपनी द्वारा निवेशक को दिए जाते हैं. यहां निवेशक और फंड हाउस के बीच में कोई ब्रोकर, मीडिएटर या एजेंट नहीं होता है. यह स्कीम रेगुलर प्लान की अपेक्षा सस्ती होती है और इसमें वितरकों को कमीशन नहीं मिलता है. इसमें ज़ोखिम ज्यादा होता है. वहीं अगर आप किसी एजेंट की मदद से म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो ऐसे फंड रेगुलर म्यूचुअल फंड होते हैं. रेगुलर प्लान में निवेशक को डायरेक्ट प्लान के मुकाबले ज्यादा शुल्क देना होता है. इसमें ज़ोख़िम कम होता है और बाज़ार की कम जानकारी रखने वालों के लिए ये स्कीम अच्छी रहती है क्योंकि निवेशक फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद से इस स्कीम में निवेश कर सकते हैं.