ऐसी कंपनियां जिनके खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया जारी है उन कंपनियों की तरफ से बैंकों को पर्सनल गारंटी देने वालों पर गाज गिरना अब तय है. वर्ष 2019 में ही केंद्र सरकार ने इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (दिवालिया कानून) में संशोधन करके गारंटी देने वालों की भूमिका तय करने का कानून बनाया था.
इस प्रावधान के खिलाफ पर्सनल गारंटी देने वालों की तरफ से सैकड़ों याचिकाएं दायर कर दी गई थी कि इनसे गारंटी देने वालों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है. कानूनी पचड़े में फंसने की वजह से सैकड़ों दिवालिया प्रक्रियाएं भी ठप्प पड़ी हुई थीं. अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ से किये गये प्रावधानों को सही ठहराया है. यानी ऐसी कंपनियों को पर्सनल गारंटी देने वालों वालों पर भी कार्रवाई की जा सकेगी.
तीन जजों की खंडपीठ ने दिया फैसला
आईबीसी के जानकारों का कहना है कि इससे कंपनी से बकाये वसूलने में काफी सहूलियत होगी. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पार्दीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि आईबीसी में जोड़ा गया संबंधित प्रावधान संविधान की अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है और इसे मनमाना प्रावधान नहीं माना जा सकता.
गारंटर की बात भी सुनी जाए
यह आदेश आईबीसी के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाले 391 याचिकाओं पर भी स्थिति साफ कर दी है. आईबीसी की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों से जुड़े कानूनी प्रावधानों जैसे धारा 95(1), 96(1), 97(5), 99(1), 99(2), 100 आदि को चुनौती दी गई थी. याचिका दायर करने वालों की प्रमुख मांग यह रही है कि किसी कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने से पहले उसके लिए गारंटी देने वालों की बात भी सुनी जाए.
जीवन यापन करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ
सरकार की तरफ से संशोधन में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं किया गया है. याचिका करने वालों का तर्क है कि ये प्रावधान नैसर्गिक न्याय के सिद्दांत के खिलाफ है और जीवन यापन करने, कारोबार या कोई प्रोफेशन करने के मौलिक अधिकार के भी खिलाफ है. जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को सही नहीं माना है. आईबीसी के प्रमुख जानकार अजीत कुमार का कहना है कि सरकार की तरफ से वर्ष 2019 में उक्त प्रावधानों को जोड़े जाने से पहले आईबीसी मुख्य तौर पर कॉरपोरेट से ही जुड़ा हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य- एक्सपर्ट
अजीत कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य है और इससे आईबीसी में लेनदारों के अधिकारों की ज्यादा बेहतर तरीके से रक्षा किया जा सकेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो लेनदार अब पर्सनल गारंटी देने वालों से भी अपनी बकाया राशि की वसूली कर सकेंगे। पर्सनल गारंटी देने वालों की व्यक्तिगत परिसंपत्तियों से भी वसूली करने का रास्ता सशर्त साफ हो गया है.
वहीं, कई मामलों में यह देखा जाता है कि कॉरपोरेट सेक्टर में छद्म गारंटी की व्यवस्था कर लेते हैं. अब ऐसा करने से लोग बचेंगे. वर्ष 2016 में सरकार ने आईबीसी तैयार किया था ताकि देश में दिवालिया प्रक्रिया को कानूनी तौर पर तेज किया जा सके. इसका एक बड़ा उद्देश्य बैंकिंग और वित्तीय कंपनियों में फंसे कर्जे को कम करना भी था. कानून के तहत किसी भी कंपनी की दिवालिया प्रक्रिया को 180 दिनों में पूरा करने की व्यवस्था है, लेकिन मौजूदा तंत्र में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है. हर वर्ष 5000 के करीब नये मामले आईबीसी के तहत दायर हो रहे हैं.